मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर विनायक चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है। भविष्य पुराण, चतुवर्ग चिंतामणि व कृत्य-कल्पतरु शास्त्रों में इसे गणेश चतुर्थी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान गणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा जाता है। विनायक चतुर्थी का पर्व हर माह दिन के हिसाब से मनाया जाता है। विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि भगवान गणेश को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती और ना ही उनकी पूजा सामग्री में तुलसी को शामिल किया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
कथा के अनुसार माना जाता है कि भगवान गणेश गंगा नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे और वहीं तुलसी घूम रही थीं। भगवान गणेश को देखकर तुलसी उनकी ओर आकर्षित हो गईं और उन्हें अपना पति बनाने का सोच लिया। लेकिन गणेश जी उस वक्त तपस्या में लीन थे तो तुलसी ने अपने दिल की बात कहने के लिए उनका ध्यान भंग कर दिया। जब भगवान गणेश का ध्यान भंग हो गया तो तुलसी ने उन्हें अपने दिल की बात बताई। तुलसी की बात सुनकर गणेश जी ने बड़ी शालीनता से उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। गणेश जी ने तुलसी से कहा कि वो उस लड़की से शादी करेंगे, जिसके गुण उनकी माता पार्वती से मिलेंगे।
भगवान गणेश की यह बात सुनकर तुलसी दुखी हुई और उन्हें गुस्सा आ गया। तुलसी ने इसे अपना अपमान समझा। तुलसी ने गणेश जी को श्राप दे डाला। तुलसी ने कहा कि आपकी शादी आपकी इच्छा के बिल्कुल उलट होगी और शादियां भी दो होंगी। तुलसी की यह बात सुनकर गणेश जी को भी गुस्सा आ गया और उन्होंने तुलसी को श्राप दे दिया कि तुम्हारा विवाह किसी राक्षस से होगा। गणेश जी के श्राप से तुलसी को अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने भगवान गणेश से माफी मांग ली। माफी मांगने के बाद गणेश जी का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण नाम के राक्षस से होगा।