Vidur Niti: विदुर नीति के तीसरे अध्याय में महाराज धृतराष्ट्र कहते हैं कि हे विदुर तुम मुझे धर्म और अर्थ से जुड़े विषयों के बारे में बताते रहो। मुझे इन विषयों के बारे में सुनते हुए तृप्ति नहीं होती है। इसलिए मैं इन विषयों के बारे में और अधिक जानना चाहता हूं।
धर्म और अर्थ के बारे में बताते हुए विदुर कहते हैं कि धर्म और अर्थ यानी धन से जुड़े हुए विषय सांसारिक जीवन जीने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए सभी सांसारिक व्यक्ति इसके बारे में जानना चाहते हैं। उनका मानना हैं कि धन के बारे में 4 बातें जरूर पता होनी चाहिए। विदुर जी कहते हैं –
श्रीर्मङ्गलात् प्रभवति प्रागल्भयात् सम्प्रवर्धते।
दाक्ष्यात्तु कुरुते मूलं संयमात् प्रतितिष्ठति।।
शुभ कर्मों से होती हैं लक्ष्मी की उत्पत्ति – अर्थ के बारे में बताते हुए विदुर जी कहते हैं कि शुभ कर्म करने से लक्ष्मी की उत्पत्ति होती है। इसका मतलब यह बताया जाता है कि जो व्यक्ति शुभ कर्म जैसे यज्ञ, हवन, धार्मिक कार्य, निर्धनों की सहायता, जरूरतमंदों की सेवा और दुखी व्यक्ति को सुख पहुंचाता है वह अपने लिए धन की उत्पत्ति का मार्ग सुगम बनाता हैं। ऐसे व्यक्ति पर आने वाले समय में धन आगमन के योग बन सकते हैं।
प्रगल्भता से बढ़ता है धन – यहां प्रगल्भता का मतलब प्रतिभा से है। विदुर जी कहते हैं कि प्रतिभा धन को बढ़ाने वाली होती है। जो व्यक्ति यह चाहता है कि उसके जीवन में धन वृद्धि हो उस व्यक्ति को अपनी प्रतिभा के विकास के बारे में सोचना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को लगातार अपनी प्रतिभा का विकास करना चाहिए। वे कहते हैं कि प्रतिभा का विकास करने से धन बढ़ता चला जाता है।
चतुरता से संचित रहता है धन – विदुर जी कहते हैं कि धन संचय करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि व्यक्ति में चतुरता हो। माना जाता है कि समाज में अनेकों बार ऐसे मौके आते हैं जब पैसा खर्च करना होता है, ऐसे में चतुर व्यक्ति ही अपने धन के लिए उचित निर्णय लेकर पैसे को व्यर्थ खर्च होने से रोकता है जिससे धन संचय करने में मदद मिलती है।
धन सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है संयम – विदुर नीति में यह बताया गया है कि संयम से धन सुरक्षित रहता है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति में संयम होता है वह केवल तब ही पैसा खर्च करता है जब बहुत ज्यादा जरूरत हो। ऐसे में पैसा सुरक्षित रहता है।

