आचार्य चाणक्य (Chanakya) की तरह ही महात्मा विदुर की नीतियों को भी काफी पसंद किया जाता है। विदुर नीति में नीति सिद्धातों का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया गया है। विदुर नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणामों को लेकर परेशान महाराज धृतराष्ट्र के साथ हुआ विदुर का संवाद है। कहा जाता है कि विदुर नीति का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कभी परेशान नहीं होता। विदुर ने अपनी नीतियों में कुछ ऐसे काम बताए हैं जिसे करने वाला व्यक्ति मूर्ख कहलाता है।
परं क्षिपति दोषेण वर्त्तमानः स्वयं तथा।
यश्च क्रुध्यत्यनीशानः स च मूढतमो नरः॥
अर्थ- विदुर नीति अनुसार जो व्यक्ति अपनी गलती को दूसरे की गलती बताकर खुद को बुद्धिमान समझता है तथा अक्षम (असमर्थ) होते हुए भी क्रुद्ध (गुस्सा करना) होता है, वह महामूर्ख कहलाता है।
अनाहूत: प्रविशति अपृष्टो बहु भाषेते।
अविश्चस्ते विश्चसिति मूढचेता नराधम:॥
अर्थ- एक मूर्ख व्यक्ति बिना किसी की आज्ञा लिए किसी के भी कक्ष में प्रवेश कर जाता है, सलाह लिए बिना अपनी बात दूसरों पर थोपता है तथा ऐसे लोगों पर विश्वास करता है जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
संसारयति कृत्यानि सर्वत्र विचिकित्सते।
चिरं करोति क्षिप्रार्थे स मूढो भरतर्षभ॥
अर्थ- जो इंसान अनावश्यक कर्म करता है यानी जिसकी आवश्यकता न हो, सभी को संदेह की दृष्टि से देखता है, जरूरी कार्यो को पूरा करने में विलंब से करता है, वह मूर्ख कहलाता है।
अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम् ॥
अर्थ- जो व्यक्ति शत्रुओं से दोस्ती करता है तथा अपने मित्रों और शुभचिंतकों को दुःख देता है, उनसे ईर्ष्या करता है। हमेशा बुरे कामों में लिप्त रहता है, वह व्यक्ति भी मूर्ख कहलाता है।
विदुर नीति अनुसार दूसरों से ईर्ष्या और घृणा करने वाले व्यक्ति मूर्ख होते हैं और हमेशा दुखी रहते हैं। इसी तरह असंतुष्ट, गुस्सा करने वाला, शंकालु और दूसरों पर आश्रित रहने वाला इंसान भी हमेशा परेशान रहता है।

