Utpanna Ekadashi Vrat Katha In Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाता है। आज भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ व्रत रखने का विधान है। मान्यता है कि आज के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से हर काम सिद्ध हो जाते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ-साथ उत्पन्ना एकादशी पर इस व्रत कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और जीवन में खुशियां ही खुशियां बनी रहती हैं। आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा…

उत्पन्ना एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त (Utpanna Ekadashi Vrat Shubh Muhurat)

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की 26 नवंबर की पूर्वाह्न (मध्य रात्रि) 1 बजकर 1 मिनट पर शुरू हो चुकी है, जो 27 नवंबर की तड़के सुबह 3 बजकर 47 मिनट तक है।

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उत्पन्ना एकादशी व्रत पारण मुहूर्त | Utpanna Ekadashi Vrat Paran Muhurat

उत्पन्ना एकादशी पूजा का समय- सुबह 11 बजकर 47 मिनट से दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगा.
उत्पन्ना एकादशी का पारण का समय- 27 नवंबर की दोपहर 1 बजकर 12 मिनट से दोपहर 3 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।

उत्पन्ना एकादशी की कथा (Utpanna Ekadashi Ki Katha, Ekadashi Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार,  सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं। तब भगवान शिव ने कहा, हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दुखों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ।

वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं। शिवजी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुंचे और कहा कि हे! मधुसूदन आप हमारी रक्षा करें। कहा कि हे भगवन, दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से निकाल दिया है, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें। इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र, ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके सहारे में है तथा उसका स्थान कहां है? यह सब मुझसे कहो। यह सुनकर इंद्र बोले, भगवन!

प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ। उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से निकालकर वहां अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है। सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए।

यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगरी जाओ। इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था। जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े तो विष्णु ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला। बहुत-से दैत्य मारे गए। केवल मुर बचा रहा। वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा। भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता। उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गया, किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा। दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ। 10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा लेकिन मुर नहीं हारा। थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए। यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था। विष्णु भगवान वहां योग निद्रा की गोद में सो गए।

मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ, तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया। श्री हरि जब योग निद्रा से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अतः: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं।

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डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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