Tulsi Manjari ke Upay: हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। मान्यता है कि कार्तिक मास में तुलसी पूजा और तुलसी विवाह के साथ-साथ तुलसी मंजरी अर्पित करने से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। तुलसी के पौधे में कार्तिक माह के दौरान मंजरी निकल आती है, जिसे तोड़ना अति आवश्यक माना जाता है। इसके पीछे एक गहराई भरी पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, जिसमें देवी लक्ष्मी की परीक्षा, शाप और मुक्ति का प्रसंग मिलता है…

तुलसी के पौधे से क्यों हटा दें तुरंत मंजरी?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक समय ऐसा आया जब देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और देवी गंगा के बीच किसी विषय को लेकर मतभेद उत्पन्न हो गया। प्रारंभ में यह केवल विचारों का टकराव था, परंतु धीरे-धीरे वह बहस इतना बढ़ गई कि देवियों ने क्रोधवश एक-दूसरे को शाप दे डाला। इसी विवाद के दौरान देवी गंगा ने देवी लक्ष्मी की ओर संकेत करते हुए कहा कि “तुमने मुझे नदी का वेग दिया है, परंतु आज मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम वृक्ष स्वरूप धारण करोगी।” इस शाप के परिणामस्वरूप देवी लक्ष्मी बाद में वृंदा के रूप में अवतरित हुईं और फिर तुलसी का पवित्र स्वरूप धारण किया।

उसी समय वहाँ माता पार्वती उपस्थित हो गईं और उन्होंने आश्चर्य से पूछा, “आखिर किस कारण देवियों के बीच यह कलह उत्पन्न हो गई?” देवी गंगा ने बताया कि लक्ष्मी जी ने उनकी स्थिति पर हँसी उड़ाई, इसलिए क्रोध में आकर उन्होंने यह शाप दे दिया। यह सुनकर माता पार्वती ने गहन स्वर में कहा, “क्रोध में दिया गया शाप कभी भी मंगलकारी नहीं होता। क्या आप सभी को इस बात का भान है कि शाप भोगना कितना कठिन होता है?”

इसके पश्चात माता पार्वती ने देवी लक्ष्मी को समझाते हुए कहा कि संसार में 84 लाख योनियाँ मानी गई हैं, जिनमें से लगभग 20 लाख योनियाँ वृक्षों और पौधों की हैं। उन्होंने पूछा, “हे लक्ष्मी, सोचिए, वनस्पति रूप में आ जाने के पश्चात आपको कितनी-कितनी योनियाँ भोगनी पड़ेंगी?” यह सुनते ही देवी लक्ष्मी को अपने व्यवहार पर ग्लानि हुई और उन्होंने माता पार्वती से क्षमा प्रार्थना की। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा, “हे माता, यदि कोई उपाय हो जिससे मैं इन 20 लाख वनस्पति योनियों से एक बार में ही मुक्त हो जाऊँ, तो कृपा करके अवश्य बताइए।”

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माता पार्वती ने उत्तर दिया, “इस प्रश्न का समाधान केवल महादेव ही दे सकते हैं, क्योंकि वही सभी बंधनों और योनि-चक्र से मुक्ति दिलाने वाले हैं।” फिर माता पार्वती ने भगवान शिव से इस विषय में मार्गदर्शन देने की विनती की। भोलेनाथ ने करुणा दिखाते हुए कहा कि लक्ष्मी जी को वनस्पति योनि से मुक्ति दिलाई जा सकती है, परंतु इसके लिए एक विशेष धार्मिक विधान का पालन आवश्यक है।

भगवान शिव ने कहा कि कार्तिक मास में देवी लक्ष्मी तुलसी पौधे के रूप में प्रकट होंगी। जब द्वादशी तिथि आए, तब तुलसी के पौधे में लगी मंजरी को तोड़कर शालिग्राम भगवान को अर्पित किया जाए। ऐसा करने से लक्ष्मी जी को तुलसी रूपी योनि से मुक्ति प्राप्त होती है और उन्हें अन्य किसी पौधे या वृक्ष की योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता। इस प्रकार वे पुनः अपने दिव्य स्वरूप में स्थापित हो जाती हैं और मोक्ष को प्राप्त करती हैं।

आगे कहा गया है कि तुलसी मंजरी को भगवान कृष्ण को अर्पित करने से भी समान पुण्य मिलता है और ऐसा करने से न केवल देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, बल्कि श्रीकृष्ण भी अपेन साधकों पर कृपा बरसाते हैं। इस विधान का पालन करने वाले व्यक्ति को भी माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपदा और ऐश्वर्य का वास होता है।

तुलसी की मंजरी तोड़ते समय बोलें ये मंत्र

तुलसी मंजरी तोड़ते समय बोला जाने वाला मंत्र:

तुलस्यै नमः।
श्रीवृन्दावन्यै नमः।
श्रीहरिवल्लभायै नमः।

अगर आप मंत्र नहीं बोल सकते हैं तो बोले- हे तुलसी माता, मैं आपको प्रणाम करता हूं। आप भगवान विष्णु की प्रिय हैं, कृपया मेरे ऊपर अपनी कृपा बनाए रखें।

किस दिन तोड़े तुलसी से मंजरी

तुलसी की मंजरी एकादशी, द्वादशी या फिर रविवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए। इसके अलावा शाम के समय न तोड़े। इसके अलावा आप कभी भी तोड़ सकते हैं।

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