राकेश चक्र

प्रत्येक प्राणी और प्रकृति की सभी चल – अचल वस्तुएं इस पृथ्वी माता के पुत्र और पुत्रियां हैं । ऐसा वेद कहते हैं – माता भूमि पुत्रोंहं पृथिवया: (अथर्ववेद)। अर्थात यह भूमि माता है , मैं पृथ्वी का पुत्र हूं। इस तरह का भान और भाव जब प्रत्येक मनुष्य के अंत: में होगा, तो धरती स्वर्ग बन जाएगी। धरती माता के सम्मुख हम कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहेंगे कि उसको कोई पीड़ा हो या उसके पुत्र या पुत्रियों को हो।

अथर्ववेद के पृथ्वीसूक्त ऋ षि की दृष्टि भी सबको पूजा के भाव से ही देखती है, जो भी पृथ्वी माता से जन्मा है। अर्थात धरती के सभी मनुष्य, वन्य प्राणी, पक्षी, सांप, बिच्छू, पर्वत, घाटियां, नदियां और सरोवर आदि सभी पृथ्वी के पुत्र और पुत्रियां हैं। वे सभी हमारा कल्याण करने वाले हैं। जब हमारे अंदर ऐसा भाव रहेगा, तब हम आपस में धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र आदि को लेकर ईर्ष्या, द्वेष, कपट, वैर और हिंसा आदि करने में विश्वास नहीं करेंगे।

जिस राष्ट्र में वेद, उपनिषद, गीता आदि लिखी गर्इं, वहां के मनुष्य अपनी धरती के पुत्र और पुत्रियों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। भौतिकवाद के चक्रव्यूह में फंसकर मनुष्य पृथ्वी का विनाश करने पर तुल गया है। पूरे विश्व में विनाशकारी हथियारों का जखीरा बढ़ता ही जा रहा है। मनुष्य की ही मनमानी पूर्ण कार्यशैली से आज कितने ही जीव-जंतु विलुप्त हो गए हैं, अर्थात या तो वे मार दिए गए हैं या मनुष्य का आहार बन गए हैं और आज भी बन रहे हैं। बहुत सारे हरे-भरे जंगल काट दिए गए और आज भी जंगलों पर आरियां निरंतर चल रही हैं।

मनुष्य के लिए हर संसाधन कम पड़ते जा रहे हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि के लिए अनेकानेक साधन जुटाए जा रहे हैं, इसी कारण आज प्रदूषण चरम पर पहुंच गया है। खेती की जमीन कम पड़ती जा रही है। खेती के लिए हल, बैल की पूरी तरह छुट्टी हो गई है। गोवंश का नर अर्थात बैल व सांड मारा- मारा फिर रहा है। खेती को उजाड़ रहा है। जीवन जीने की खाद्य सामग्री भी कम पड़ती जा रही है, साथ ही बहुत महंगी हो रही है। समय पर वर्षा का न होना या कहीं इतनी अधिक होना कि त्राहि-त्राहि मच जाए, यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण ही हो रहा है। विश्व की सभी सत्ताएं विकास का ढोल पीट रही हैं।

इन सबसे मुक्ति पाने के लिए हमें अपनी सोच बदलकर पहल तो करनी ही होगी। कम खाना और गम खाना की नीति अपनानी होगी ,अर्थात अस्तेय और अपरिग्रह की नीति में विश्वास करना होगा। कथनी और करनी एक करनी होगी। समाज में जागरूकता लानी होगी। यह सब हम धरती माता को बचाकर ही कर सकते हैं। अर्थात उसके पुत्र और पुत्रियों को बचाकर ही कर सकते हैं। अर्थात पर्वत ,जल और जंगलों आदि की सुरक्षा कर ही जलवायु परिवर्तन के असंतुलन से बच सकते हैं। धरती को हरा-भरा बनाकर ही कर सकते हैं। धरती मां को स्वर्ग बना सकते हैं।