Sawan Somvar Puja Vidhi, Vrat Katha, Samagri: सावन का पांचवां और आखिरी सोमवार 3 अगस्त को है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्त महादेव व देवी पार्वती की अराधना करते हैं। व्रती सूर्योदय से लेकर दिन के तीसरे पहर तक उपवास करते हैं। माना जाता है कि व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन विधि-विधान से पूजा करना चाहिए, साथ ही सोमवार व्रत कथा भी जरूर सुननी चाहिए। भक्त इस दिन एक बार भोजन ग्रहण कर सकते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से घर में सुख-शांति आती है।
कैसे करें पूजा: सावन के आखिरी सोमवार के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। पूजा का स्थान और पूरे घर की साफ-सफाई के बाद नहा लें। साफ-सुथरे कपड़े धारण करके पूजा के स्थान पर भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर के सामने व्रत रखने का संकल्प लें। इस समय आप ‘मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये’। ये उच्चारण करें। इसके उपरांत भगवान शिव और पार्वती का ध्यान करें और इस मंत्र का जाप करें।
‘ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
शिव चालीसा और रुद्राष्टक पाठ: ध्यान करने के उपरांत महादेव और देवी पार्वती का षोडशोपचार पूजन करें। इस दिन शिवलिंग का अभिषेक करना भी बेहद उपयोगी बताया जाता है। साथ ही, शिव चालीसा और रुद्राष्टक के पाठ से भी भक्तों पर सदैव औढ़रदानी की कृपा बनी रहती है। व्रत पूजन के बाद व्रत कथा जरूर सुनें। अंत में आरती कर शिव को भोग लगाएं और प्रसाद सभी में वितरित कर दें। इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
इन मंत्रों के जाप से होगा फायदा:
महामृत्युंजय मंत्र- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् || शिवपुराण में सावन के महीने में महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का विशेष महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि इस मंत्र के जप से संसार के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही इसका जप करने से मृत्यु का भय नहीं रहता।
रुद्र गायत्री मंत्र: ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात। शिव गायत्री मंत्र बहुत ही शक्तिशाली मंत्र बताया जाता है। माना जाता है सावन में प्रतिदिन इस मंत्र का जप करने से सभी तरह की समस्याएं दूर होती हैं।
ॐ नमः शिवाय।
नमो नीलकण्ठाय।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।