वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब भी कोई ग्रह राशि परिवर्तन करता है। तो उसका सीधा असर मानव जीवन पर देखने को मिलता है। आपको बता दें कि शनि ग्रह ने 29 अप्रैल को स्वराशि कुंभ में प्रवेश किया था। मान्यता है शनि देव कर्मों के अनुसार जातक को फल प्रदान करते हैं। इसलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी शनि ग्रह राशि परिवर्तन करते हैं तो किसी राशि पर साढ़ेसाती और ढैय्या शुरू होती है तो किसी को साढ़ेसाती- ढैय्या से मुक्ति मिलती है। मतलब शनि देव राशि परिवर्तन करते ही 5 राशियों को अपनी चपेट में लेते हैं। आपको बता दें कि शनि ग्रह ने 12 जुलाई को मकर राशि में वक्री अवस्था में गोचर कर लिया है, जिससे इन राशियों पर ढैय्या का प्रभाव शुरू हुआ है…

इन राशि वालों पर शुरू हुआ ढैय्या का प्रभाव:
ज्योतिष शास्त्र अनुसार शनि ग्रह के कुंभ राशि में प्रवेश करते ही मिथुन और तुला राशि के लोगों को शनि ढैय्या से मुक्ति मिल गई थी। वहीं कर्क और वृश्चिक राशि के लोग इसकी चपेट में आ गए थे। लेकिन 12 जुलाई को शनि ग्रह वक्री अवस्था में मकर राशि में प्रवेश करते ही मिथुन और तुला राशि के लोग फिर से ढैय्या की चपेट में आ गए हैं। जिससे कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों को शनि की ढैय्या से मुक्ति मिल गई है। अब इन लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।

साथ ही नई नौकरी मिल सकती है। या फिर जॉब में कार्यरत हैं तो प्रमोशन या इंक्रीमेंट हो सकता है। इस समय आप लोग प्रापर्टी और वाहन भी खरीद सकते हैं। लेकिन मिथुन और तुला राशि के लोगों पर फिर से ढैय्या का प्रकोप शुरू होने से बनते हुए काम बिगड़ सकते हैं। कोई रोग भी हो सकता है। साथ ही कारोबार में मुनाफा कम हो सकता है।

वैदिक ज्योतिष में शनि देव को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। यह मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने गए हैं। तुला राशि शनि की उच्च राशि है जबकि मेष इसकी नीच राशि है।नौ ग्रहों में शनि की गति सबसे धीमी है। शनि की दशा साढ़े सात वर्ष की होती है जिसे शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है। साथ ही ढैय्या की अवधि ढाई साल की होती है।