Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj: भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा-वृंदावन की पावन धरती पर हर दिन देश-दुनिया से काफी लोग आते हैं। यहां पर भगवान कृष्ण के साथ-साथ राधा रानी के सैकड़ों मंदिर मौजूद है। अगर आप भी भगवान कान्हा की नगरी वृंदावन या फिर मथुरा जा रहे हैं, तो कुछ नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। स्वामी प्रेमानंद महाराज के कई ऐसे वीडियो है जिन्हें वह वृंदावन या फिर मथुरा आने वाले साधकों को कान्हा के दर्शन करने के साथ-साथ कुछ नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। तभी आपकी ये धार्मिक यात्रा स्थल हो सकती है। प्रेमानंद महाराज से एकांतिक वार्तालाप में एक व्यक्ति महाारज जी से पूछते हैं कि वृंदावन या मथुरा जैसे पवित्र धाम में जब कोई नया व्यक्ति दर्शन के लिए आता है, तो उसे किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए…

अगर कोई अपनी भावनाएं शेयर करें, तो हमें सुनना चाहिए कि नहीं? प्रेमानंद महाराज से आप भी जान लें उत्तर

इस सवाल का जवाब देते हुए महाराज जी समझाते हैं कि सबसे पहली बात यह है कि भगवान का नाम कभी नहीं छूटना चाहिए, क्योंकि यही नाम आपकी बुद्धि को शुद्ध रखेगा। धाम में किसी के दोष नहीं देखने चाहिए, क्योंकि हमारी दृष्टि अभी मायामयी है — हम स्त्री, पुरुष, जड़ और चैतन्य को देखकर गलतियां ढूंढते हैं। यदि कोई दोष दिखाई दे भी जाए तो उसका वर्णन बिल्कुल न करें, अन्यथा हमारा धाम आना व्यर्थ और अपराध बन जाएगा।

धाम में रहते हुए गृहस्थ जीवन की विलासिता को छोड़ना चाहिए। जैसे घर में रहते हैं वैसे भोग वहां न करें। चाहे एक दिन रहें या चार दिन, ब्रह्मचर्य का पालन करें। अपने ही अर्जित धन से भोजन करें और किसी दूसरे का भोग (जैसे हलवा-पूरी) न ग्रहण करें। यदि धन कम है, तो चना-गुड़ जैसे सादे भोजन से संतोष करें। धाम पुण्य कमाने के लिए है, उसे खोने के लिए नहीं। यदि संभव हो, तो धाम में एक दिन का उपवास भी करें — सिर्फ जल या फल से शरीर का पोषण करें। हर पल का उपयोग भगवान के नाम स्मरण, कीर्तन और दर्शन में करें।

धाम में सेवा और दान का भाव रखें। अगर आपके पास थोड़ा भी धन है, तो उससे पक्षियों के लिए दाना डालें, किसी संत को वस्त्र या नमक जैसी वस्तुएं दें। यह सब भगवत भावना से करें, किसी दिखावे या प्रचार के लिए नहीं। यदि किसी भंडारे से भोजन लेना हो, तो उसके बदले अपने सामर्थ्य अनुसार कुछ दान अवश्य करें — जैसे ₹10, ₹20, ₹50 जितना भी उचित हो, और यदि नहीं कर सकते तो वहां से भोजन न लें। गृहस्थ का कर्तव्य है कि वह दान नहीं ले, बल्कि जितना भगवान ने दिया है उसमें संतोष रखे।

संतों के दर्शन करते समय, उनके प्रति भगवत भाव रखें, उन्हें साधारण मनुष्य न समझें। जैसे एक पत्थर को जब हम भगवान मानते हैं तो वह पूज्य बन जाता है, वैसे ही संत को भगवान का स्वरूप मानें, तभी हमें पुण्य और लाभ मिलेगा। संत के दर्शन मात्र से पाप नष्ट होते हैं। दर्शन करते समय दीनता और विनम्रता रखें, अहंकार न हो। ज्यादा देर तक संतों के पास न टिकें, क्योंकि हमारी मलिन बुद्धि कुछ न कुछ दोष ढूंढ सकती है, जिससे अपराध हो सकता है। सत्संग सुनें और फिर एकांत में उसका मनन करें, ताकि भजन में मन लगे और दोष दर्शन न हो।

महाराज जी अंत में कहते हैं कि संतों की लीलाएं हमारी समझ से परे होती हैं, इसलिए उन्हें मानव दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। यदि भगवत भाव से दर्शन करेंगे, तो ही संत रूपी भगवान से हमें सच्चा लाभ मिलेगा। संतों के प्रति श्रद्धा, सेवा, भजन और दोषरहित भाव से किया गया तीर्थ-धाम वास ही वास्तव में पुण्यदायक और भगवतप्राप्ति में सहायक होता है।

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