सप्तऋषि सामूहिक रूप से सात ऋषियों को कहा जाता है, जिसका वर्णन खास तौर पर वेदों और अन्य धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है। इनमे से कुछ ऋषि मानस पुत्र हैं जिसका अर्थ है के ये ब्रह्मा के मस्तिष्क से उत्पन्न हुए हैं। कहते हैं कि शुरुआत में वेदों में कभी इन ऋषियों को उनके नामों से नहीं जान गया मगर बाद में वैदिक ग्रंथों में इन्हें नाम दिये गए थे। परंतु क्या आप जानते हैं कि ये सप्तऋषि कौन-कौन थे और धार्मिक ग्रंथों में इन्हें क्या महत्व प्रदान किया गया है? यदि नहीं तो आगे इसे जानिए।

वेदों में सप्तऋषियों को वैदिक धर्म का संस्थापक माना गया है। सप्त ऋषि वास्तव में एक अनुक्रम में कार्य करते रहे और उसी तरह सप्त ऋषि के अलग-अलग समूह ने मानव की हर पीढ़ी का मार्गदर्शन किया। वर्तमान सप्त ऋषि समूह में शमिल ऋषियों के नाम- कश्यप, अत्री, वैशिष्ट, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज हैं। वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का स्थान भी काफी ऊंचा है। भारद्वाज के पिता बृहस्पतिदेव और माता ममता थी। कहते हैं भारद्वाज ऋषि श्रीराम के जन्म से पहले अवतरित हुए। इनकी लंबी आयु का पता इस बात से चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे। भारद्वाज ऋषि वेदों के कई मंत्रों की रचना की है। उन्होंने भारद्वाज स्मृति और भारद्वाज संहिता की भी रचना की।

ऋषि अत्री ब्रह्मा के पुत्र सोम के पिता और कर्दम प्रजापति और देवहुति की पुत्री अनुसूया के पति बताए गए हैं। ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र एक राजा थे और वे ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय हड़पना चाहते थे। कहते हैं कि इसके लिए उन्होंने युद्ध भी किया। लेकिन वे युद्ध में वशिष्ठ से हार गए थे। कहते हैं कि इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया था। विश्वामित्र ने ही गायत्री मंत्र की रचना की थी। ऋषि कणव को वैदिक काल का ऋषि माना जाता है। इन्होंने अपने आश्रम में हस्तीनपुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण किया था।