चैत्र कृष्ण पक्ष की सक्रांति से पारंपरिक पर्व भिटोणे की शुरुआत होती है जो कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को समाप्त होती है। इस पारंपरिक पर्व में लड़कियां अपने मायके आती हैं और अपने भाई के लिए देसी घी, दही सूजी और चीनी को मिलाकर बनाए गए सया के प्रसाद का भोग चढ़ाती हैं और भाई इसके बदले में आशीर्वाद स्वरूप बहन को टीका लगाते हैं और उपहार देते हैं। इस तरह चैत्र मास का कृष्ण पक्ष भाई बहन के पवित्र बंधन का पक्ष माना जाता है। बहन और भाई एक दूसरे के लिए मंगल कामना करते हैं।
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नव संवत्सर और चैत्र नवरात्र का शुभारंभ होता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होने वाले चैत्र नवरात्र का समापन चैत्र शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को चंडी देवी के पूजन के साथ समाप्त होता है और हरिद्वार में गंगा के तट पर स्थित नील पर्वत स्थित में चंडी देवी के मंदिर में चंडी चौदस का मेला लगता है। शुक्ल पक्ष की नवमी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्मदिन रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन अयोध्या में भगवान श्री राम दशरथ जी के बड़े पुत्र के रूप में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में अवतरित हुए थे। शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि देवी के पूजन के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण मानी जाती है
हरिद्वार कनखल शिव की ससुराल माना जाता है और यही स्थान शिव की पहली पत्नी सती का जन्म स्थल है और सती ने अपने पति भगवान शिव का अपने पिता राजा दक्ष द्वारा अपमान होने पर उनके यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। कनखल में सती कुंड में सती ने आत्मदाह किया था इसलिए कनखल सती कुंड शक्तिपीठों की उद्गम स्थली माना जाता है और इसे सर्वांग शक्ति पीठ कहा गया है हरिद्वार में सती की नाभि जिस स्थल पर गिरी थी वहां पर माया देवी सिद्ध शक्ति पीठ की स्थापना हुई और हरिद्वार को मायापुरी के नाम से भी जाना जाता है। देश के विभिन्न भागों में स्थापित अयोध्या,मथुरा, काशी, कांची, अवंतिका, द्वारका और मायापुरी हैं। इन सात पुरियों को मोक्षदा पुरी भी कहते हैं जो मनुष्य को मोक्ष प्रदान करती हैं और सात पुरियों में सबसे ज्यादा महत्त्व गंगा तट पर स्थित मायापुरी का है
मैदानी भाग हरिद्वार में गंगा तट पर मां मनसा देवी, शीतला माता, सुरेश्वरी देवी, चामुंडा देवी, तारा देवी, आदि शक्ति पीठ दक्षिण काली देवी, बाल कुमारी देवी, सिद्ध पीठ स्थापित है वही पर्वतीय क्षेत्रों में गढ़वाल मंडल में श्रीनगर में अलकनंदा नदी के तट पर धारी देवी सिद्ध पीठ, रुद्रप्रयाग के पास कालीमठ, नरेंद्र नगर के पास 51 सिद्ध पीठ हो में से एक कुंजापुरी देवी सिद्ध पीठ, सुरकंडा देवी, ज्वालपा देवी, चंद्रबदनी माता देवी, कंस मर्दिनी, विंध्यवासिनी देवी, कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ में मुंसियारी के पास नंदा देवी, कोकिला देवी, द्वाराहाट में द्रोणागिरी देवी, टनकपुर में पूर्णागिरी देवी, नैनीताल में नयना देवी, गंगोलीहाट में हाट काली देवी के मंदिर स्थापित है। चंपावत जिले में चंडिका मंदिर का विशेष महत्व माना गया है।

