साल 2020 का पहला सूर्य ग्रहण 21 जून को लगने जा रहा है। खास बात ये हैं कि ये वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा जिसमें चंद्रमा सूर्य का करीब 98.8% भाग ढक देगा। भारत समेत इस ग्रहण का नजारा नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूऐई, एथोपिया तथा कोंगों में दिखेगा। वहीं भारत में देहरादून, सिरसा अथवा टिहरी कुछ प्रसिद्ध शहर है जहां पर लोग वलयाकार सूर्य ग्रहण का खूबसूरत नजारा देख पाएंगे। देश के अन्य हिस्सों में आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।
सूर्य ग्रहण का समय: देश की राजधानी दिल्ली में सूर्य ग्रहण की शुरुआत 10:20 AM के करीब होगी। ग्रहण 12:02 PM बजे अपने पूर्ण प्रभाव में होगा और इसकी समाप्ति 01:49 PM पर होगी। देश के अन्य शहरों में ग्रहण के समय में कुछ अंतर देखने को मिल सकता है। इस ग्रहण का सूतक काल मान्य होगा।
क्या होता है वलयाकार सूर्य ग्रहण: ये ग्रहण न ही आंशिक सूर्य ग्रहण होगा और न ही पूर्ण सूर्यग्रहण, क्योंकि चन्द्रमा की छाया सूर्य का करीब 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वलयाकार आकृति बनायेगी। जिससे सूर्य आसमान में एक आग की अंगूठी की तरह नजर आएगा। साल के सबसे बड़े दिन पर ये ग्रहण लगने जा रहा है। जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आता है और सूर्य के मध्य भाग को पूरी तरह से ढक लेता है तो इस घटना को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है। इसके परिणामस्वरूप सूर्य का घेरा एक चमकती अंगूठी की तरह दिखाई देता है।
खुली आंखों से न देखें ग्रहण: चंद्रमा की तरह सूर्य ग्रहण खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि इसका बुरा असर आपकी आंखों पर पड़ सकता है। सूर्य ग्रहण को सुरक्षित तकनीक या तो एल्युमिनेटेड मायलर, ब्लैक पॉलिमर, शेड नंबर 14 के वेल्डिंग ग्लास या टेलिस्कोप द्वारा सफेद बोर्ड पर सूर्य की इमेज को प्रोजेक्ट करके करके उचित फिल्टर का उपयोग करके देखा जा सकता है।
ग्रहण से संबंधित अहम जानकारी के लिए बने रहिए इस ब्लॉग पर…
सूर्य ग्रहण के दौरान नंगी आंखों से आसमान की ओर देखने से बचना चाहिए। इस दौरान सूरज की इनफ्रारेड और अल्ट्रावॉयलेट किरणें आंखों के रेटिना को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
यह ग्रहण भी वलय (रिंग) रूप में उत्तर भारत में सिर्फ 21 किमी चौड़ी एक पट्टी में ही नजर आएगा। अन्यत्र यह आंशिक ग्रहण की तरह ही दिखेगा। वलय की अधिकतम अवधि मात्र 38 सेकंड रहेगी।
ध्यान रखें कि सूर्य ग्रहण कभी भी नंगी आंखों से न देखें। क्योंकि इस दौरान सूर्य से खतरनाक किरणें निकलती हैं जो सूर्य को सीधे देखने पर आपकी आंखों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। सूर्यग्रहण को देखने के लिए स्पेशल सोलर फिल्टर्स का इस्तेमाल किया जाता है। होममेड फिल्टर्स या साधारण सनग्लासेज से भी सूर्य की तरफ न देखें फिर चाहे वह डार्क सनग्लास ही क्यों न हो। एक्लिप्स ग्लास या सोलर व्यूअर्स आते हैं उनका इस्तेमाल करें। टेलिस्कोप से ग्रहण देखते वक्त सोलर फिल्टर को टेलिस्कोप के स्काई एंड की तरफ लगाएं न की टेलिस्कोप के आई पीस की तरफ। अगर आपके पास ये सारे ऑप्शन्स या इंतजाम नहीं हैं तो बेहतर होगा कि आप नंगी आंखों से खुद ग्रहण देखने की बजाए टीवी पर ही इसे देख लें।
सूर्यग्रहण के समय एक साथ छह ग्रह वक्री यानी उल्टी चाल चल रहे होंगे। बुध, गुरु, शुक्रशनि, राहू व केतु वक्री रहेंगे। यह ग्रहण आर्थिक मंदी की ओर इशारा कर रहा है। वहीं ग्रहण के समय मंगल जलतत्व की राशि में बैठकर सूर्य, बुध, चंद्रमा और राहू पर दृष्टि कर रहा है। यह सब भारी बारिश की ओर संकेत दे रहा है।
ऐसा नजारा धरती पर कम ही देखने को मिलता है। इस दिन सूर्य एक चमकती अंगूठी की तरह दिखेगा। ये न तो आंशिक ग्रहण होगा और न ही पूर्ण। चंद्रमा की छाया सूर्य का 99% भाग ढकेगी। जिस कारण सूर्य के किनारे वाले हिस्सा प्रकाशित रहेगा और बीच का हिस्सा पूरी तरह से चांद की छाया से ढक जाएगा।
ग्रहण का वलयाकार रूप सुबह उत्तर भारत के राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा। इन राज्यों के भीतर भी कुछ प्रमुख स्थान हैं, जहां से स्पष्ट पूर्ण ग्रहण दिखेगा, जिनमें देहरादून, कुरुक्षेत्र, चमोली, जोशीमठ, सिरसा, सूरतगढ़ शामिल हैं।
एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने कहा, ‘‘दोपहर के करीब, उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में सूर्य ग्रहण एक सुंदर वलयाकार रूप (अंगूठी के आकार का) में दिखेगा क्योंकि चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढक पाएगा।’’
सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या को ही पड़ता है। जबकि चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन पड़ता है। ज्योतिष सिद्धांत में इसकी जानकारी हजारों साल पहले से मिलती है।
ग्रहण कुदरत का एक अद्भुत चमत्कार है। ज्योतिष के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह अभूतपूर्व अनोखा, विचित्र ज्योतिष ज्ञान, ग्रह और उपग्रहों की गतिविधियाँ एवं उनका स्वरूप स्पष्ट करता है। इसका व्यापक प्रभाव होता है।
इस साल का पहला सूर्य ग्रहण आज लगने जा रहा है। यह एक कुंडलाकार सूर्य ग्रहण है, जिसके दौरान चंद्रमा केंद्र से सूर्य को कवर करता है, जिससे बाहरी रिंग दिखाई देती है, जिससे आकाश में आग की अंगूठी बनती है।
ग्रहण एक लौकिक और वैज्ञानिक सत्य है। इसके विधानों और नियमों की अवहेलना और प्रतिकूल रूप से व्यवहार करना हानिकारक होता है।
ग्रहणकाल में भजन और ईश्वर आराधना के अलावा सभी कुछ निषेध है। अपने ईष्टदेव के मंत्र जाप और ध्यान लगाने से घर में शांति रहती है, साथ ही विघ्न-बाधाएं भी दूर होती हैं।
यह सूर्य ग्रहण उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के देशों और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के अधिकांश हिस्सों से दिखाई नहीं देगा। इनके अतिरिक्त यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्पेन और कुछ अन्य यूरोपीय महाद्वीप के देशों से सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा।
तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन।
हेमताराप्रदानेन मम शान्तिप्रदो भव॥१॥
श्लोक अर्थ - अन्धकाररूप महाभीम चन्द्र-सूर्य का मर्दन करने वाले राहु! सुवर्णतारा दान से मुझे शान्ति प्रदान करें।
भारत में उत्तरी राज्यों राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड में वलयाकार सूर्य ग्रहण का नजारा देखने को मिलेगा। देश के बाकी हिस्सों में आंशिक सूर्य ग्रहण देखा जाएगा ये ग्रहण भारत के अलावा नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूएई, इथोपिया और कांगो में दिखाई देगा।
ग्रहण के दौरान व्यक्ति को कुश का तिनका अपने शरीर से स्पर्श करते हुए भी रखना चाहिए। पुरुष अपने कान के ऊपर कुश का तिनका लगा सकते हैं, वहीं महिलाएं अपनी चोटी में इसे धारण करके रखें।
कुश ऊर्जा का कुचालक है। इसीलिए सूर्य व चंद्रग्रहण के समय इसे भोजन और पानी में डाल दिया जाता है जिससे ग्रहण के समय पृथ्वी पर आने वाली किरणें कुश से टकराकर परिवर्तित हो जाती हैं।
ग्रहण काल में हर वस्तु में कुश डालने की मान्यता है। कुश का महत्व सनातन धर्म के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत अधिक है। मान्यता है कि जब सीता माता पृथ्वी में समाई थीं तो भगवान राम जल्दी से दौड़कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता माता का केश ही आ पाया। ये केश राशि ही कुश के रूप में परिवर्तित हो गई।
ग्रहण के दौरान निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा से बचाव के लिए मंदिरों से लेकर घरों तक हर वस्तु की शुद्धि के लिए तमाम साधन उपयोग में लाए जाते हैं। इन्हीं साधनों में सबसे अहम है कुश का प्रयोग।
रविवार को ग्रहण शुरू होने पहले नहा लें। इसके बाद ग्रहण के दौरान पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पूजा-पाठ करें। ग्रहण खत्म होने पर संकल्प के अनुसार चीजों का दान करें। इसके बाद गाय को हरी घास खिलाएं, कुत्तों और कौवों को रोटी खिलाएं।
21 जून 2020, दिन रविवार आषाढ़ कृष्ण अमावस्या को सूर्यग्रहण देश में खंडग्रास के रूप में ही दिखेगा। यह ग्रहण गंड योग और मृगशिरा नक्षत्र एवं मिथुन राशि में होगा। भारतीय टाइम के अनुसार ग्रहण का स्पर्श दिन में 9:16 बजे, मध्य 12:10 बजे एवं मोक्ष 3:04 बजे होगा। सूर्य ग्रहण का समय हर स्थान पर अलग-अलग होता है।
जिन जातकों को शनिग्रह की अढ़ैया अथवा साढ़ेसाती हो या जन्मकुंडली के अनुसार ग्रहों की महादशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतरदशा प्रतिकूल हो तथा सूर्य के साथ राहु या केतु हों। उन्हें ग्रहणकाल में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। सूर्य से संबंधित मंत्र का मानसिक जाप करें तथा आदित्यहृदय स्त्रोत या गायत्री मंत्र का जप करें। ग्रहण आद्रा नक्षत्र और मिथुन राशि पर लगेगा, जिसकी वजह से मिथुन राशि विशेष प्रभावित होगी।
यह सूर्य ग्रहण उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के देशों और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के अधिकांश हिस्सों से दिखाई नहीं देगा। इनके अतिरिक्त यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्पेन और कुछ अन्य यूरोपीय महाद्वीप के देशों से सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा।
देश की राजधानी दिल्ली में सूर्य ग्रहण की शुरुआत 10:20 AM के करीब होगी। ग्रहण 12:02 PM बजे अपने पूर्ण प्रभाव में होगा और इसकी समाप्ति 01:49 PM पर होगी। देश के अन्य शहरों में ग्रहण के समय में कुछ अंतर देखने को मिल सकता है। इस ग्रहण का सूतक काल मान्य होगा। जिसकी शुरुआत ग्रहण लगने से ठीक 12 घंटे पहले हो जाएगी। सूतक 20 जून की रात 09:52 बजे से लग जाएगा।
आप घर बैठे ऑनलाइन सूर्य ग्रहण को लाइव देख सकेंगे। कई यूट्यूब चैनल ग्रहण की लाइव स्ट्रीमिंग करते हैं। Slooh और Virtual Telescope चैनल इस घटना को लाइवस्ट्रीम करने के लिए जाने जाते हैं।
ग्रहण का सूतक काल लगने के बाद प्रकृति ज्यादा संवेदनशील हो जाती है. यही कारण है कि इस दौरान पेड़, पौधों और पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए. हालांकि तुलसी के पत्तों को पहले ही तोड़कर रख लें और पानी में भीगने दें. सूतक लगने के बाद यदि किसी को खाना परोसें भी तो उसमें तुलसी का पत्ता जरूर डालें.
ज्योतिष के विशेषज्ञों की मानें तो इस सूर्यग्रहण के समय ग्रह नक्षत्रों में कुछ ऐसे बदलाव होंगे जिससे कोरोना महामारी का अंत होना शुरू हो जाएगा। सूर्य ग्रहण की वजह से वर्षा की कमी, गेहूं, धान और अन्य अनाज के उत्पादन में कमी आ सकती है। प्रमुख देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच तनाव और बहस बढ़ सकती है। वहीं व्यापारियों के लिए यह ग्रहण अच्छा माना जा रहा है।
इस बार का सूर्य ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। लेकिन यह ग्रहण हर स्थान पर वलयाकार रूप में नहीं दिखेगा। भारत में देहरादून, चमोली, कुरुक्षेत्र, मसूरी, टोहान क्षेत्र में ग्रहण का कंकण (वलयाकार) यानि खग्रास रुप दिखाई देगा। लेकिन कई जगहों पर जैसे कोलकाता, हैदराबाद, शिमला, चेन्नई, मुंबई, चंडीगढ़, आदि शहरो में आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिखेगा। जानकारी अनुसार नई दिल्ली में सूर्य का 95 प्रतिशत हिस्सा ढका हुआ दिखाई देगा।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सोलर व्यूइंग ग्लासेज (Solar viewing glasses) या टेलिस्कोप-दूरबीन जैसे स्पेशल फिल्टर्स का इस्तेमाल करना चाहिए। सूरज को सीधे देखने से आंखों का पर्दा (Retina) खराब हो सकता है और हमेशा के लिए आंखों की रोशनी जा सकती है।
21 जून के बाद आप अगला सूर्य ग्रहण 14-15 दिसंबर में देख पायेंगे। लेकिन ये ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा।
- एक साल में 5 सूर्य ग्रहण तक हो सकते हैं।
- पूर्ण सूर्यग्रहण एक दुर्लभ दृश्य है। जो हर 18 महीने में एक बार ही होता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के लिए, सूर्य को चंद्रमा द्वारा कम से कम 90 प्रतिशत तक ढका होना जरूरी होता है।
देश-दुनिया में कई जगहों पर सूर्यग्रहण लगने के दौरान दिन में भी शाम जैसी स्थिति हो जाएगी। सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य चमकते छल्ले की तरह दिखाई देगा। खास बात कि साल के सबसे बड़े दिन पर लगने वाला यह सूर्यग्रहण देश में कहीं पूर्ण रूप से तो कहीं आंशिक रूप से दिखाई देगा। इस बार उत्तर भारत के लोगों को भी यह अद्भूत दृष्ट देखने को मिलेगा। ग्रहण के समय सूर्य के केंद्र का भाग पूरा काला नजर आने वाला है, जबकि किनारों पर चमक रहेगी।
मत्स्यपुराण की कथानुसार, जब समुद्र मंथन से अमृत निकला था तो राहु नाम के दैत्य ने देवताओं से छिपकर उसका पान कर लिया था। इस घटना को सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया था और उसके इस अपराध को उन्होंने भगवान विष्णु को बता दिया था। इस पर श्रीविष्णु को क्रोध आ गया था और उन्होंने राहु के इस अन्यायपूर्ण कृत से उसे मृत्युदंड देने हेतु सुदर्शन चक्र से राहु पर वार कर दिया था और परिणाम स्वरूप राहु का सिर और धड़ अलग हो गया लेकिन अमृतपान की वजह से उसकी मृत्यु नहीं हुई। वहीं राहु ने सूर्य और चंद्रमा से प्रतिशोध लेने के लिए दोनों पर ग्रहण लगा दिया, जिसे आज हम सब सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के नाम से जानते हैं।
यूं तो चांद का ज्यादातर हिस्सा छिप जाएगा लेकिन फिर भी इसे नंगी आंखों से नहीं देखा जाना चाहिए। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सोलर व्यूइंग ग्लासेज (Solar viewing glasses) या टेलिस्कोप-दूरबीन जैसे स्पेशल फिल्टर्स का इस्तेमाल करना चाहिए। सूरज को सीधे देखने से आंखों का पर्दा (Retina) खराब हो सकता है और हमेशा के लिए आंखों की रोशनी जा सकती है।
21 जून को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। भारत के जिन स्थानों पर वलयाकार सूर्य ग्रहण दिखाई देगा, उनमें देहरादून, कुरुक्षेत्र, चमोली, जोशीमठ, सिरसा, सूरतगढ़ आदि शामिल हैं। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में आंशिक सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा। ग्रहण की शुरुआत 9 बजकर 16 मिनट के करीब होने लगेगी लेकिन वलयाकार सूर्य ग्रहण 10 बजे के बाद से दिखाई देना शुरू होगा। वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य के पूरे भाग को न ढक कर उसका 98.8% भाग ही ढक पाता है। जानिए क्या है सूर्य ग्रहण और कैसे लगता है ये…
चंद्रमा द्वारा सूर्य के बिम्ब के पूरे या कम भाग को ढक पाने के कारण सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं। जिन्हें आंशिक सूर्य ग्रहण, वलयाकार सूर्य ग्रहण और पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण का नजारा धरती पर कम ही देखने को मिलता है।
आंशिक ग्रहण शुरू: रविवार 21 जून 2020, सुबह 10:46
अधिकतम ग्रहण : 12:35 दोपहर
ग्रहण खत्म: 14:17 बजे दोपहर
ग्रहण का सूतक काल लगने के बाद प्रकृति ज्यादा संवेदनशील हो जाती है. यही कारण है कि इस दौरान पेड़, पौधों और पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए. हालांकि तुलसी के पत्तों को पहले ही तोड़कर रख लें और पानी में भीगने दें. सूतक लगने के बाद यदि किसी को खाना परोसें भी तो उसमें तुलसी का पत्ता जरूर डालें.
21 जून को सुबह 9:15 बजे ग्रहण शुरू हो जाएगा और 12:10 बजे दोपहर में पूर्ध ग्रहण दिखेगा। इस दौरान कुछ देर के लिए हल्क अंधेरा सा छा जाएगा। इसके बाद 03:04 बजे ग्रहण समाप्त होगा। यानी करीब 6 घंटे का लंबा ग्रहण होगा। लंबे ग्रहण की वजह से पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हो रही है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, किसी भी पूर्ण ग्रहण के शुरू होने से 12 घंटे पहले और ग्रहण के 12 घंटे बाद का समय ग्रहण सूतककाल कहलाता है। मान्यता है कि इस दौरान मंदिरों में पूजा पाठ या कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। सूतककाल समाप्त होने के बाद ही मंदिर खुलते हैं और लोग पूजा अनुष्ठान शुरू करते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार जब पृथ्वी चंद्रमा व सूर्य एक सीधी रेखा में हों तो उस अवस्था में सूर्य को चांद ढक लेता है जिस सूर्य का प्रकाश या तो मध्यम पड़ जाता है या फिर अंधेरा छाने लगता है इसी को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।