Radhashtami 2021 Date: यूँ तो भारतीय दर्शन में ऐसे ढेरों पर्व हैं जो आंतरिक और बाह्य दोनों उन्नति के वाहक हैं, और आपको आपके स्व से परिचित करा कर सिर्फ़ आपका भविष्य ही नहीं आपमें ब्रम्हाण्ड को बदलने की शक्ति से रूबरू कराने का माद्दा रखते हैं। लेकिन वर्ष में सोलह दिन ऐसे हैं जो आपको किसी महाशक्ति में रूपांतरित करने का दम रखते हैं।
उत्तर और पूर्व भारत का यह गुप्त महापर्व है सुरैया जो सोलह से बने सोहरैया का अपभ्रंश है। ये पर्व आमजन में प्रचलित न होकर सिद्धों और साधकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। ये सोलह दिन हैं तो बेहद प्रभावी और कभी बड़े प्रचलित भी थे। पर वक्त के थपेड़ों में वो गुम होकर कालांतर में गुप्त और लुप्त हो गए। आज भले ही वो अन्य पर्वों से कम प्रचलन में हैं पर आज भी इनकी कोई सानी नहीं है। ये भौतिक उन्नति और आत्मिक शक्ति के विकास के लिए बेहद तीव्र व महत्वपूर्ण हैं। इन सोलह रात्रियों का आग़ाज़ होता है भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से। यह अष्टमी राधाअष्टमी कहलाती हैं। राधाअष्टमी इस बार 14 सितंबर को है।
अलग अलग पंथ, संप्रदाय और मत के लोग इसे भिन्न भिन्न नामों से पुकारते हैं, पर कहते हैं कि आत्मजागरण के इस पर्व का प्रयोग राम, परशुराम, दुर्वासा, विश्वामित्र, कृष्ण, बुद्ध, महावीर से लेकर आचार्य चाणक्य तक ने किया। प्राचीन काल में उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार और नेपाल तक की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक समृद्धि के सूत्र इन षोडश दिवस में समाहित हैं। भारत के सोने की चिड़िया बनने की चाभी भी षोडश दिवस का यह काल अपने भीतर समेटे और लपेटे हुए है। यांत्रिक, तांत्रिक, वैज्ञानिक, आत्मिक यानी स्वजागरण से लेकर समृद्धि प्राप्ति तक के लिए बेहद असरदार और धारदार माना जाता है यह पवित्र काल खण्ड। इसलिए आत्मबोध के प्यास की अनुभूति क्षीण होते ही आत्मजागृति के इस महापर्व को लक्ष्मी साधना का पर्व मान लिया गया। इसी वजह से देश के कई भागों में यह पर्व लक्ष्मी उपासना के रूप में ही जाना जाता है।
ये सत्य है कि इन दिनों यक्षिणी और योगिनी साधना का अतिमहत्व है और आध्यात्मिक मान्यतायें यक्ष-यक्षिणी को स्थूल समृद्धि का नियंता मानती है।सनद रहे कि कुबेर यक्षराज और लक्ष्मी यक्षिणी हैं। इसलिए लक्ष्मी से संबंधित उपासना दिवाली नहीं, इन सोलह दिनों में महासिद्धि प्रदान करने वाली कही गयी है। लक्ष्मी के उपासकों से लेकर आत्मजागृति के पैरोकार इन सोलह दिनों तक उपासना और उपवास में रमे होते हैं। सदगुरुश्री के अनुसार आत्मिक उत्थान चाहने वालों के लिए ये रात्रियां बेहद क़ीमती हैं।
राधाअष्टमी स्वयं में एक महापर्व है। शास्त्रों में इस तिथि को श्री राधाजी के प्राकट्य दिवस के रूप में मान्यता हासिल है। कहते हैं कि इसी दिन राधा वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं। राधा अष्टमी से अगली अष्टमी तक की षोडश रात्रियाँ मानव ही नहीं सम्पूर्ण सृष्टि को बदलने की महाक्षमता से ओतप्रोत हैं। आप जैसी अपनी सोच रखेंगे ये सोलह दिन आपको वैसे ही परिणाम प्रदान करेंगे। राधाअष्टमी अष्टमी से कृष्ण पक्ष की अष्टमी का काल सुरैया कहलाता है। सुरैया, यानि वो काल जो जीवन को सुर में ढाल दे। धनाकांक्षियों को इन षोडश दिनों में लक्ष्मी के साथ यक्ष-यक्षिणी की उपासना अवश्य करनी चाहिए। विद्या के लिए कण्ठ चक्र कर ध्यान करना चाहिए। बाहरी पदार्थों की प्राप्ति के लिए अंतःकरण के एक भाग चित्त को स्थिर करने का प्रयास करना चाहिए। चित्त को एक बिंदु कर किसी कामना के लिए रोकने के प्रयास और अभ्यास को ही मंत्र साधना कहा गया है।
इन दिनों में यक्ष, यक्षिणी, योगिनी व दैविक ऊर्जाओं के साथ ऐंकार, सौ:कार, श्रींकार, ह्रींकार, क्लींकार व अन्य बीज मंत्रों से अर्चना की समृद्ध परंपरा प्राप्त होती है। आध्यात्म कहता है कि सुरतों यानी आत्माओं के महाबूंद की एक धारा निचले जगत में उतारी गयी। जिससे ये निर्जीव जगत चेतन हुआ, गतिशील हुआ। इस धारा के विपरीत अपने परम तत्व को प्राप्त कर लेने की अवधारणा ही मूल रूप से राधा है। स्वयं को राधा में परिवर्तित कर अपने परम तत्व अर्थात् सत्त को हासिल करने के लिए इन रात्रियों में ब्रह्मांडीय ध्वनियों का श्रवण यानी भजन और ध्यान के द्वारा स्वयं में उतरने का अभ्यास आमूल चूल रूप से पूरा जीवन और जीवन के बाद के जीवन को बदल कर रख देता है।
