नरपतदान चारण
सही अर्थ में इनसान की पहचान उसके सुंदर तन अथवा वस्त्रों से नहीं, उसके सुंदर विचार व वाणी से होती है। यानी वाणी व्यक्तित्व की पहचान होती है। वाणी में आध्यात्मिक और भौतिक, दोनों प्रकार के ऐश्वर्य हैं। भले ही कोई व्यक्ति कितना ही सुंदर क्यों न हो, अगर वाणी में मिठास नहीं है,तो वह कभी भी किसी को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता है। चरित्र का चित्रण बातचीत करने के ढंग से स्पष्ट होता है। इसलिए व्यक्ति को हमेशा मीठी व मधुर वाणी का उपयोग करना चाहिए। सामान्य दिखने वाला व्यक्ति यदि सौम्य है और उसकी वाणी में मिठास है तो वह सहज ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।
उचित-अनुचित का ज्ञान रखकर बोलने से व्यक्तित्व प्रभावशाली बन सकता है। अहम छोड़कर मधुरता से सुवचन बोलें तो जीवन का सच्चा सुख मिल जाएगा। कभी अंहकार में तो कभी क्रोध और आवेश में कड़वे वचन बोल कर हम अपनी वाणी को तो दूषित करते ही हैं, सामने वाले को भी कष्ट पहुंचाकर अपने लिए पाप भी बटोरते हैं, जो हमें शक्तिहीन बनाता है। यथा, वाणी में अमृत भी है और विष भी, मिठास भी और कड़वापन भी।अगर वाणी में कठोरता है तो सामने वाला आपसे नफरत करेगा और नाराज भी होगा। वहीं अगर आप शालीनता से अपनी बात रखते है तो सामने वाला आपका प्रशंसक बन जाएगा।
श्रीमद्भागवत में तीन प्रकार के तपों की चर्चा है। इनमें शारीरिक तप, मानसिक तप तथा वाचिक तप शामिल है। वाचिक तप का मतलब वाणी के प्रवाह से है। वाचिक तप के संबंध में कहा है कि उद्वेग उत्पन्न न करने वाले वाक्य, हित कारक तथा सत्य पर आधारित वचन एवं स्वाध्याय वाचिक तप है। विदेशी विद्वान फ्रेंकलिन ने अपनी सफलता का रहस्य बताते हुए कहा था कि किसी के प्रति अप्रिय न बोलना तथा जो कुछ बोला जाए उसकी अच्छाइयों से संबंधित ही बोला जाए तो इस वाणी से सुनने वाला तो प्रसन्न होगा ही, बोलने वाला भी आनंदित होगा।
वास्तव में वाणी को संयम में रखने वाला व्यक्ति ऊंचाइयों तक पहुंच जाता है। इसके विपरीत अनियंत्रित वाणी वाले व्यक्ति को प्राय: जीवन भर सफलता प्राप्त नहीं हो पाती। जो व्यक्ति वाणी से सदैव मीठा बोलता है, उसके चाहने वालों का और मित्रों का क्षेत्र भी विस्तारित होता है। मृदुभाषी होने की स्थिति में लोगों के सहयोग और समर्थन में वह अत्यधिक ऊर्जा का संग्रह कर लेता है, जबकि कटु वचन बोलने वाला व्यक्ति अकेला पड़ जाता है।
जो लोग मन बुद्धि व ज्ञान की छलनी में छानकर वाणी का प्रयोग करते हैं, वे ही हित की बातों को समझते हैं और वे ही शब्द और अर्थ के संबंध ज्ञान को जानते हैं। जो व्यक्ति बुद्धि से शुद्ध वचन का उच्चारण करता है वह अपने हित को तो समझता ही है, जिससे बात कर रहा है उसके हित को भी समझता है।
मधुरता से कही गई बात कल्याण कारक रहती है, किंतु वही कटु शब्दों में कही जाए तो अनर्थ का कारण बन सकती है। कटु वाक्यों का त्याग करने में अपना और औरों का भी भला है। वाणी की शालीनता और शीतलता मनुष्य के व्यक्तिव के आभूषण है।मीठी और कर्ण प्रिय वाणी बिगड़े काम बना देती है। मीठी वाणी सफलता के द्वार खोल देती है और उलझे कार्यो को सुलझा देती है।
पर बेढंगी या कर्कश वाणी से समस्याएं आ जाती है और बने-बनाए काम बिगड़ जाते है। इसीलिए हमें मधुरवाणी का संग करना चाहिए। किसी मूर्तिकार की तरह अपनी वाणी को तराशते रहना चाहिए। बोलने से पहले हमें शब्दों को तोल लेना चाहिए। हर शब्द में मिठास और शालीनता का रंग भरकर मुख से दूसरों के बीच रखना चाहिए। वाणी अप्रिय असत्य , प्रिय असत्य , सत्य अप्रिय नहीं हो तो बेहतर है।
वाणी प्रिय हो और सत्य हो तो सारे अनर्थ को सार्थक कर देती है। लिहाजा, आपकी वाणी ऐसी होनी चाहिए कि अगर कोई सुने तो वाह-वाह करे और सोचे एक बार और बोले तो अच्छा। कबीरदास जी ने कहा भी है कि ऐसी वाणी बोलिये,मन का आपा खोय।औरन को शीतल करें,आपहु शीतल होय।