स्कंद षष्ठी के अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन किया जाता है। मंदिरों में विशेष पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन विशेष पूजा का विधान होता है। इसमें स्कंद देव यानी कार्तिकेय का पूजन किया जाता है और अखंड दीपक जलाया जाता है। भगवान स्कंद को शक्ति का अधिदेव बताया जाता है और इन्हें देवताओं का सेनापतित्व प्रदान किया गया था। मयूर पर आसीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा की जाती है। स्कंद भगवान हिंदू धर्म के प्रमुख देवों में से एक माने जाते हैं। स्कंद को कार्तिकेय और मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है।

दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक भगवान कार्तिकेय शिव और पार्वती के पुत्र हैं। भगवान कार्तिकेय के जन्म की कथा के विषय में पुराणों में ज्ञात होता है। माना जाता है कि जब दैत्यों का अत्याचार और आतंक फैल गया था तब सभी देव ब्रह्मा जी के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षा के लिए कहते हैं। ब्रह्म देव कहते हैं कि उनके दुखों का अंत भगवान शिव के पुत्र ही कर सकते हैं। लेकिन तब भगवान शिव माता सती के दुख में तपस्या में लीन थे। इंद्र भगवान शिव को ढूंढने के लिए जाते हैं पर वो उन्हें कहीं नहीं मिलते हैं। वहां भगवान शिव माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इसके बाद शिव माता पार्वती से विवाह करते हैं। विवाह के बाद भगवान शिव और माता पार्वती देवदारु वन में एकांतवास में चले जाते हैं।

शिवजी की गुफा में जाकर उन्हें कोई देवगणों की समस्या बताने की हिम्मत नहीं करता है। तब एक कबूतर शिव गुफा में जाता है और वहां जमीन पर पड़े हुए वीर्य का पान कर लेता है, लेकिन उसका ताप सहन नहीं कर पाता और गंगा को सौंप देता है। पवित्र नदी गंगा भी उसका ताप नहीं सहन कर पाती हैं तो वो इसे धरती को सौंप देती हैं। गंगा की लहरों के काराण वीर्य 6 भागों में विभाजित हो जाता है और इन 6 भागों से 6 दिव्य बालक उत्पन्न होते हैं और बाद में 6 सिर वाले एक बालक में बदल जाते हैं। कार्तिकेय असुरों का वध करके देवों को उनका स्थान देते हैं।