भगवान कार्तिकेय का पूजन मनोकामना सिद्धि को पूर्ण करने के लिए किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय के पूजन से रोग, दुख और दरिद्रता का निवारण होता है। इसी के साथ इस दिन व्रत और पूजन करने से काम, क्रोध, मद, मोह और अहंकार से मुक्ति मिलती है। इसी के साथ स्कंद षष्ठी के दिन पूजन के लिए अन्य मान्यता अनुसार कहा जात है कि भगवान विष्णु ने माया के मोह में पड़े नारद जी का इस दिन उद्धार किया था और लोभ से मुक्ति दिलाई थी। इस दिन कार्तिकेय के साथ भगवान विष्णु का भी पूजन किया जाता है।
कार्तिकेय देव को दक्षिण दिशा का देवता माना जाता है। मान्यता है कि वो अपने माता-पिता से रुष्ट होकर दक्षिण दिशा में आकर रहने लगे थे। दक्षिण भारत में स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर वही स्थान है जहां पर भगवान कार्तिकेय ने निवास किया था। स्कंद षष्ठी के दिन व्रत करने वाले लोगों को दक्षिण दिशा में बैठकर ही पूजन करना चाहिए। इसके साथ पूजा में शुद्ध घी का दीपक जला कर ताजे फूलों से भगवान को अर्घ्य दें। इसके बाद मांस, मदिरा आदि दूर होकर रात्रि में जमीन पर सोना लाभदायक माना जाता है।
दक्षिण भारत के निवासी कार्तिकेय को अपना रक्षक मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। मयूर भगवान कार्तिकेय का वाहन है, इस कारण से स्कंद षष्ठी के दिन उसका पूजन करना भी शुभ है और इसी कारण से कार्तिकेय को मुरुगन भी कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय की पूजा के बाद इस मंत्र का जाप करना लाभदायक माना गया है।
देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते।।
