Sita Navami Puja Vidhi, Muhurat, Katha: हिंदू धर्म में सीता नवमी का उतना ही महत्व बताया गया है जितना राम नवमी का है। सीता नवमी हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी मनाई जाती है। इस दिन श्रीराम की पत्नि माता सीता का प्राकट्योत्सव हैं, इसे जानकी नवमी भी कहा जाता है। भक्त इस खास दिन पर व्रत रख माता सीता और श्रीराम की अराधना करते हैं। इस साल सीता नवमी 10 मई मंगलवार मनाई जाएगी। आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त, पूजा- विधि और महत्व…

आइए जानते हैं सीता नवमी का शुभ मुहूर्त:

सीता नवमी इस बार मंगलवार, 9 मई को शाम 6 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ होकर अगले दिन शाम 7 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। उदिया तिथि होने के कारण सीता नवमी 10 मई को ही मनाई जाएगी।

सीता नवमी पूजा विधि (Sita Navami Puja Vidhi):

सीता नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। पूजा वाले स्‍थान को साफ करने के बाद आम के पत्तों और फूल से एक मंडप तैयार कर लें। फिर मंडप के बीच में एक चौकी लगाकर उस पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं उसे फूलों से सजा लें। इसके बाद चौकी पर भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें। पूजन सामग्री के तौर पर चावल, जौ, तिल आदि का प्रयोग करें। इसके बाद सीता- राम जी का भोग लगाकर प्रसाद बांटे। सीता नवमी पर सच्चे मन से मां सीता की उपासना करने वालों के घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है। ऐसी भी मान्यताएं हैं कि माता सीता की पूजा-पाठ से रोग और पारिवारिक कलह से मुक्ति मिल सकती है।

आइए जानते हैं माता सीता का प्राकट्योत्सव कैसे हुआ:

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार मिथिला राज्य में अकाल पड़ गया था। ऋषियों ने राजा जनक से यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा ताकि वर्षा हो। यज्ञ की समाप्ति के अवसर पर राजा जनक अपने हाथों से हल लेकर खेत जोत रहे थे तभी उनके हल का नुकीला भाग जिसे सीत कहते हैं किसी कठोर चीज से टकराया और हल वहीं अटक गया। जब उस स्थान को खोदा गया तो एक कलश प्राप्त हुआ जिसमें एक सुंदर कन्या खेल रही थी। राजा जनक ने उस कन्या को कलश से निकाला और उस कन्या को अपनी पुत्री बनाकर अपने साथ ले गए। निःसंतान सुनयना और जनक की संतान की इच्छा पूरी हुए। हल के सीत के टकराने से वह कलश मिला था जिससे सीता प्रकट हुई थीं इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया।