मां दुर्गा को शक्ति शक्ति का रूप माना जाता है और भक्त तरह- तरह के उपाय करके मां दुर्गा को प्रसन्न करते हैं और मां जगदम्बा भक्तों के सभी कष्टों को दूर करतीं हैं। कुछ भक्त नियमित दुर्गा शप्तसती का पाठ करते हैं लेकिन दुर्गा शप्तसती का पाठ करने के लिए समय बहुत अधिक लगता है। साथ ही यह कठिन भी बहुत है और किसी भी स्त्रोत का पाठ करने के लिए उच्चारण शुद्ध होना बहुत जरूरी है।

यहां हम आज बात करने जा रहे हैं सिद्ध कुंजिका स्त्रोत की, जिसको परम कल्याणकारी और चमत्कारिक माना जाता है। इस स्त्रोत के पाठ से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह स्तोत्र श्रीरुद्रयामल के मन्त्र से सिद्ध है और इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं होती। साथ ही मात्र कुंजिका स्तोत्र के पाठ से सप्तशती के सम्पूर्ण पाठ का फल मिल जाता है।

सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करने के लाभ:
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभकारी है। इस पाठ को करने से मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। साथ ही उसके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस स्त्रोत के पाठ से व्यक्ति को ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है। सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति के ऊपर तंत्र- मंत्र के नकारात्मक प्रभाव का असर नहीं होता है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ ऐसे करें:

इस स्त्रोत का पाठ रात्रि में सबसे उत्तम माना गया है। सर्वप्रथम मां दुर्गा का एक चित्र रखें और फिर एक घी का दीपक जलाएं। इसके बाद लाल आसन पर बैठें। लाल या पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। इसके बाद स्त्रोत करने का संकल्प लें। फिर कुंजिका स्त्रोत का पाठ शुरू करें।

श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।

अथ मंत्र :-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:

ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”

।।इति मंत्र:।।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।

इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।

यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले भक्त को पवित्रता का पालन करना चाहिए। क्योंकि इस स्त्रोत के पाठ में मन और तन दोनों पवित्र होना जरूरी है।