Shukra Stotra: हिंदू पंचांग के अनुसार, सप्ताह का हर एक दिन किसी न किसी देवी-देवता या फिर नवग्रह से संबंधित होता है। ऐसे ही शुक्रवार का दिन शुक्र ग्रह से संबंधित माना जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्र को सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, आकर्षण, प्रेम का कारक माना जाता है। अगर किसी जातक की जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर होता है, तो उसके ऐश्वर्य, वैभव आदि में कमी देखने को मिलती है। भौतिक सुखी की कमी होने के साथ-साथ वैवाहिक जीवन और लव लाइफ में कोई न कोई समस्या बनी रहती है। ऐसे में आप चाहे, तो शुक्र ग्रह को मजबूत करने के लिए शुक्र देव के उपायों के साथ-साथ इस स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। आइए जानते हैं शुक्र स्तोत्र के बारे में…
कुंडली में मौजूद शुक्र दोष को दूर करने के लिए हर शुक्रवार के दिन शुक्र के बीज मंत्र का जाप करने के साथ-साथ इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
ऐसे करें शुक्र स्तोत्र का पाठ
शुक्रवार के दिन स्नान आदि करने के बाद सफेद रंग के कपड़े पहन लें। इसके बाद सूर्यदेव को तांबे के लोटे से अर्घ्य दें। इसके बाद माता लक्ष्मी की पूजा करें। फिर एक सफेद रंग के आसन या फिर कुश आदि के आसन में बैठ शुक्र देव का ध्यान करके इस स्त्रोत का पाठ करें। संस्कृत को शब्द है इसलिए जल्दबाजी करने से बचें। अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
शुक्र मंत्र
शुक्र एकाक्षरी बीज मंत्र- ‘ॐ शुं शुक्राय नम:।
तांत्रिक मंत्र- ‘ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:।
शुक्र स्तोत्र
नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित।
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नम:।।
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारग:।
परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकर:।।
प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम:।
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे।।
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भसिताम्बर:।
यस्योदये जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह।।
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे।
त्रिपुरावासिनो दैत्यान शिवबाणप्रपीडितान।।
विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन।
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन।।
बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नम:।
भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम।।
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनम:।
नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि।।
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने।
स्तवराजमिदं पुण्य़ं भार्गवस्य महात्मन:।।
य: पठेच्छुणुयाद वापि लभते वांछित फलम।
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम।।
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम।
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सामहितै:।।
अन्यवारे तु होरायां पूजयेद भृगुनन्दनम।
रोगार्तो मुच्यते रोगाद भयार्तो मुच्यते भयात।।
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा।
प्रात: काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत:।।
सर्वपापविनिर्मुक्त: प्राप्नुयाच्छिवसन्निधि:।।
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