Shukr Stotra: वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को धन, वैभव, ऐश्वर्य, विलासता, भौतिक सुख, यौन संबंध और लग्जरी लाइफ का कारक माना जाता है। इसलिए कुंडली में शुक्र ग्रह का सकारात्मक होना बहुत जरूरी है। क्योंकि जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह शुभ स्थित होते हैं, उसके जीवन में धन और वैभव की कमी नहीं रहती है। ऐसे में हम यहां आपको ऐसे स्त्रोत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका पाठ अगर कोई शुक्रवार के दिन करें तो उसके जीवन में संपन्नता आ सकती है। साथ ही उसको भौतिक सुखों की प्राप्ति हो सकती है। आइए जानते हैं इस स्त्रोत के बारे में…

शुक्र स्तोत्र पाठ की विधि (Shukr Stotra Paath Ki Vidhi)

शुक्र स्त्रोत का पाठ करने से पहले स्नाादि कर पवित्र हो। साथ ही सफेद या बादामी रंग के कपड़े पहनें।

वहीं  घर के मंदिर की सफाई करें।

पूर्व दिशा की ओर मुंह कर एक सफेद रंग के आसन पर बैठें।

इसके बाद शुक्र ग्रह और मां लक्ष्मी का चित्र या मूर्ति चौकी पर स्थापित करें।

फिर शुक्र देव का ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करें।

इसके बाद स्तोत्र का पाठ कर उन्हें सफेद मिठाई का भोग लगाएं। साथ ही फिर भोग को परिवार के सभी सदस्यों में बांट दें।

शुक्र स्तोत्र (Shukr Stotra)
नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित ।
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नम: ।।1।।
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारग: ।
परेण तपसा शुद्ध शंकरो लोकशंकर: ।।2।।
प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम: ।
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे ।।3।।
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भसिताम्बर: ।
यस्योदये जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह ।।4।।
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे ।
त्रिपुरावासिनो दैत्यान शिवबाणप्रपीडितान ।।5।।
विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन ।
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन ।6।।
बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नम: ।
भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम ।।7।।
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनम: ।
नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि ।।8।।
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने ।
स्तवराजमिदं पुण्य़ं भार्गवस्य महात्मन: ।।9।।
य: पठेच्छुणुयाद वापि लभते वांछित फलम ।
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान श्रीकामो लभते श्रियम ।।10।।
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम ।
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सामहितै:।।11।।
अन्यवारे तु होरायां पूजयेद भृगुनन्दनम ।
रोगार्तो मुच्यते रोगाद भयार्तो मुच्यते भयात ।।12।।
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा ।
प्रात: काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत: ।।13।।
सर्वपापविनिर्मुक्त: प्राप्नुयाच्छिवसन्निधि: ।।14।।

(इति स्कन्दपुराणे शुक्रस्तोत्रम)