प्रदोष व्रत भाद्रपद के महीने में शुक्रवार को पड़ता है, शुक्रवार को पड़ने की वजह से इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है। माना जाता है कि शुक्र प्रदोष व्रत का पालन करने से सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है। इस व्रत का पालन करने और भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति को धन, वैभव और सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। आइए जानते हैं शुक्र प्रदोष व्रत की तिथि और पूजा के लिए प्रदोष मुहूर्त-
शुक्र प्रदोष व्रत 2022 (Shukra Pradosh Vrat 2022)
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि शुक्रवार 23 सितंबर को प्रातः 01:17 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 24 सितंबर शनिवार को प्रातः 2:30 बजे समाप्त होगी। उदयतिथि और प्रदोष पूजा मुहूर्त के अनुसार शुक्र प्रदोष व्रत 23 सितंबर को मनाया जाएगा।
प्रदोष पूजा मुहूर्त (Pradosh Pooja Muhurt)
23 सितंबर को शुक्र प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त सायं 06:17 से 08:39 तक है। जो लोग इस दिन उपवास रखते हैं, उन्हें शिव पूजा के लिए 02 घंटे से अधिक का समय मिलता है। प्रदोष व्रत की पूजा केवल प्रदोष मुहूर्त पर ही करना महत्वपूर्ण है।
सिद्ध और साध्य योग में शुक्र प्रदोष व्रत (Shukra Pradosh Vrat in Siddha and Sadhya Yoga)
शुक्र प्रदोष व्रत आपकी मनोकामना पूर्ण कर आपके कार्यों में सफलता ला रहा है, क्योंकि इस दिन सिद्ध और साध्य योग बन रहे हैं। इस दिन सुबह से 9:56 बजे तक सिद्धयोग होगा है। उसके उपरांत साधना योग है, जो अगली सुबह 09:43 बजे तक रहेगा। ये दोनों योग शुभ हैं।
सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए शुभ मुहूर्त (Auspicious Time Happiness and Prosperity)
शुक्र प्रदोष के दिन चैघड़िया प्रगति मुहूर्त 07:56 से 09:23 बजे तक है। ऐसे में यदि आप प्रदोष पूजा के शुभ मुहूर्त का अवलोकन करें तो यह प्रगति के लिए भी शुभ मुहूर्त है। इस समय यदि आप शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखते हैं और शुभ मुहूर्त में पूजा करते हैं तो मान्यता अनुसार आपको सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और आपकी उन्नति भी होती है।
शुक्र प्रदोष व्रत कथा (Shukra Pradosh Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर था जिसमें एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। पति के देहांत के बाद कोई सहारा नहीं था, इसलिए वह सुबह होते ही पेट पालने के लिए अपने बेटे के साथ भीख मांगने निकल जाती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौटते समय एक लड़के को घायल अवस्था में कराहते हुए देखा। ब्राह्मण स्त्री ने दया के कारण लड़के को अपने साथ घर लाई, वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था।
शत्रु सैनिकों ने राज्य पर आक्रमण राजकुमार के पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर अधिकार कर लिया था, इसलिए वह भागा फिर रहा था। ब्राह्मणी के घर में राजकुमार उसके पुत्र के साथ रहने लगा। एक दिन राजकुमार को एक गंधर्व कन्या ने देखा और वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन गंधर्व कन्या अंशुमती अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने ले आई। राजकुमार पसंद आ गए। इसके कुछ दिनों बाद अंशुमती के माता-पिता को भगवान शंकर ने सपने में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमती का विवाह हो जाए। इसके बाद दोनों का विवाह कर दिया गया।
प्रदोष व्रत के साथ-साथ ब्राह्मण महिला भगवान शंकर की पूजा करती थीं। प्रदोष व्रत के प्रभाव से और गंधर्वराज की सेना की मदद से राजकुमार ने विदर्भ से दुश्मनों को खदेड़ दिया और अपने पिता के साथ फिर से खुशी-खुशी रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार महिला के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदल गए, उसी प्रकार भगवान शंकर अपने सभी भक्तों के दिन बदल देते हैं।