योगेश कुमार गोयल

सही मायनों में श्रीकृष्ण हमारे इतिहास के अभिन्न अंग हैं, जिनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व जितना मोहक था, उतना ही रहस्यमयी भी और उतनी ही अनोखी थी उनकी लीलाएं। बाल्यावस्था से लेकर जीवन पर्यन्त लीलाएं करते रहे। श्रीकृष्ण में कभी भगवान के दर्शन होते हैं तो कभी वे एक साधारण मानव सरीखे प्रतीत होते हैं।

दिलचस्प तथ्य यह है कि मानव के रूप में भी श्रीकृष्ण उतना ही आकर्षित करते हैं, जितना कि भगवान के रूप में। उनका एक-एक कार्य मन में गहरा स्थान बना जाता है। श्रीकृष्ण की लीलाओं को समझना जहां पहुंचे हुए ऋषि-मुनियों और बड़े-बड़े विद्वानों के बूते से भी बाहर था, वहीं निरक्षर और भोले-भाले ग्वाले और गोपियां उनका सानिध्य पाते हुए उनकी दिव्यता का सुख पाते हे महाभारत युद्ध के समय शांति के सभी प्रयास विफल होने पर उन्होंने संशयग्रस्त धनुर्धारी अर्जुन को ज्ञान का उपदेश देकर कर्त्तव्य मार्ग पर अग्रसर किया।

अन्याय की सत्ता को उखाड़ने के लिए अपने ही कौरव भाइयों के साथ युद्ध करते हुए उन्हें अपने कर्मों का पालन करने के लिए गीता का उपदेश दिया। युद्ध के समय वे हर पल धर्म की रक्षा करने के लिए अधर्म करने वालों के खिलाफ खड़े नजर आए, इसीलिए उन्हें अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। गीता में उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण ने कहा था:-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।।

अर्थात हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूं अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं। बाल्यकाल से लेकर बड़े होने तक श्रीकृष्ण की अनेक लीलाएं विख्यात हैं। श्रीकृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान जी का आह्रान किया था, जिसके बाद हनुमान ने वाटिका में बलराम से युद्ध किया और उनका घमंड चूर-चूर कर दिया था।

श्रीकृष्ण ने नररकासुर नामक असुर के बंदीगृह से 16100 बंदी महिलाओं को मुक्त कराया था, जिन्हें समाज द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाने पर उन महिलाओं ने श्रीकृष्ण से अपनी रक्षा की गुहार लगाई और तब श्रीकृष्ण ने उन सभी महिलाओं को अपनी रानी होने का दर्जा देकर उन्हें सम्मान दिया था। अपने एक उपदेश में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा था:-

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।

अर्थात साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूं। श्रीकृष्ण का स्वरूप कितना दिव्य था, इसकी अनुभूति इसी से हो जाती है कि एक ओर जहां अपने स्तनों पर विष लेप कर मां का रूप धारण कर दूध पिलाने आई राक्षसी पूतना का दूध पीकर श्रीकृष्ण उसे मां का सम्मान देते हैं तो दूसरी ओर उसकी दुष्टता के लिए उसका वध भी करते हैं। श्रीकृष्ण ने लंबे समय तक द्वारका पर शासन किया, इसीलिए उन्हें द्वारकाधीश नाम से भी जाना जाता है।

36 वर्षों तक द्वारका पर शासन करने के बाद वे परम धाम को प्राप्त हुए थे। पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक, सत्य-असत्य से परे पूर्ण पुरुष की अवधारणा को साकार करते श्रीकृष्ण भारतीय परम्परा के ऐसे प्रतीक हैं, जो जीवन का प्रतिबिम्ब हैं और सम्पूर्ण जीवन का चित्र प्रस्तुत करते हैं। उनका चित्र जनमानस के हृदय पटल पर एक कुशल नेतृत्वकर्ता, योद्धा, गृहस्थी, सारथी, योगीराज, देवता इत्यादि विविध रूपों में अंकित है। श्रीकृष्ण बंधन भी हैं और मुक्ति भी, एक ओर जहां वे अपने भक्तों को अपने आकर्षण में बांधते हैं तो उन्हीं भक्तों को मोह-माया के बंधन से मुक्त भी करते हैं।