शिवलिंग भगवान शिव का ही रुप माना जाता है, ये रुप परमात्मा शिव के निराकार स्वरुप को दर्शाता है। शिवलिंग को निराकार ज्योतिर्मय स्वरुप का प्रतीक है। शिवलिंग का रोज अभिषेक होता है, लेकिन शंख से कभी भी शिवलिंग पर जल अर्पित नहीं किया जाता है। हर शुभ कार्य में शंख से देवी-देवताओं को जल अर्पित किया जाता है, लेकिन शिवलिंग पर शंख से जल चढ़ाना वर्जित माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार माना जाता है कि एक समय शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई थी तो उन्होनें भगवान विष्णु के लिए कठिन तपस्या की थी। तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए और दंभ ने उनसे तीनों लोकों के लिए अजेय एक महापराक्रमी पुत्र का वरदान मांगा। विष्णु ने तथास्तु बोला और अंर्तध्यान हो गए। दंभ के पुत्र की उत्पत्ति हुई और उसका नाम शंखचूड पड़ा।
शंखचूड ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और वर में मांगा कि वह देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्मा जी ने उसे श्रीकृष्णकवच देकर वरदान पूरा किया और शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी और अंर्तध्यान हो गए। ब्रह्मा जी की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया। देवताओं ने परेशान होकर भगवान विष्णु से सहायता मांगी लेकिन उन्होनें खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया होता है। सभी देव उसके बाद भगवान शिव के पास जाते हैं और उनस प्रार्थना करते हैं। शिव उसका वध करने के लिए चल दिए लेकिन श्रीकृष्णकवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म के कारण उसका वध करने में असफल रहे। भगवान विष्णु ने चाल चली और ब्राह्मण रुप बना कर श्रीकृष्ण कवच उससे दान में ले लिया और शंखचूड का रुप धारण करके तुलसी का शील भंग किया। उसके बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड को भस्म कर दिया।
शंखचूड की हड्डियों से शंख का निर्माण हुआ। शंखचूड भगवान विष्णु का भक्त था जिस कारण से माता लक्ष्मी और विष्णु को शंख का जल प्रिय होता है और सभी देवताओं के पूजन में शंख से जल अर्पित किया जाता है। भगवान शिव ने शंखचूड का वध किया था इस कारण से उन्हें शंख से जल अर्पित नहीं किया जाता है।
