एक साल में नवरात्रि का पर्व चार बार आता है। इसमें 2 गुप्त नवरात्रि होती हैं। वहीं चैत्र और आश्विन मास में आने वाली नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। आश्विन मास में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा- अर्चना से जीवन की हर समस्या को दूर किया जा सकता है। साथ ही माता के आशीर्वाद से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर यानी कि आज सोमवार से प्रारंभ हो रही हैं। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि में कलश स्थापना या घट स्थापना का महत्व है। आइए जानते हैं घट स्थापना का शुभ मुहूर्त और नियम…
जानिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
शास्त्रों के अनुसार शारदीय नवरात्रि पर कलश की स्थापना आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को करने का विधान है। पंचांग के मुताबिक इस बार प्रतिपदा तिथि 26 सितंबर को पड़ रही है। इसलिए घट स्थापन इस दिन ही किया जाएगा। कलश स्थापना का सबसे अच्छा समय सुबह 06 बजकर 27 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 02 मिनट तक रहेगा। वहीं दूसरा शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 48 मिनट से लेकर 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। ये अभिजीत मुहूर्त रहेगा। अभिजीत मुहूर्त को ज्योतिष में सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है।
जानिए कलश स्थापना की विधि
प्रतिपदा के दिन सुबह जल्दी स्नान कर लें। साथ ही साफ वस्त्र धारण करें। वस्त्र सफेद, गुलाबी और पीले हो तो अच्छा रहेगा। साथ ही कलश को ईशान कोण में स्थापित करें। लेकिन पहले कलश पर पर स्वास्तिक बनाएं। वहीं इस पर एक कलावा बांधें और उसे जल से भर दें। कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र, अक्षत, पंचरत्न और सिक्का भी डालें। शास्त्रों के अनुसार कलश में तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए कलश की पूजा करने से, तीनों देवताओं की भी पूजा हो जाती है।
इसके बाद अलग से एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। इस पर अक्षत से नवग्रह और अष्टदल बनाएं और जल से भरे कलश को यहां स्थापित कर दें। इसके बाद गाय के घी का दीप जलाएं। साथ ही देवी के मंत्र और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। कुछ जगह मिट्टी या बालू में ज्वार बोए जाते हैं। मान्यता है जैसे- जैसे 9 दिनों में ज्वार बड़े होते हैं। वैसे ही घर में सुख- समृद्धि आती है।
एक बात का विशेष ध्यान रखें कि अगर आप दीप प्रज्वलित कर रहे हैं तो दीपक को आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रखें। वहीं कलश स्थापित करते वक्त साधक को अपना चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा में ही रखना चाहिए। जिससे पूजा का पूरा फल प्राप्त हो सके।