Maa Kushmanda Puja Vidhi, Color, Mantra, Aarti Timings: नवरात्रि के पावन के पर्व की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि में मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। वहीं नवरात्रि के चौथे दिन माता के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के मुताबिक जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय चारों तरफ अंधकार मौजूद था, तब देवी के इस स्वरूप द्वारा ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ। आपको बता दें कि देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं। इसलिए इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। ये भक्तों के कष्ट रोग, शोक संतापों का नाश करती हैं। मां कूष्मांडा की पूजा से बुद्धि का विकास होता है और जीवन में निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है। आइए जानते हैं मां कूष्मांडा की आरती, मंत्र और किस चीज का लगाना चाहिए भोग…

जानिए कैसा है मां कूष्मांडा का स्वरूप

मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। जिसमें सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। वहीं आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। वहीं माता की मधुर मुस्कान हमारी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए हमें हंसते हुए कठिन से कठिन मार्ग पर चलकर सफलता पाने को प्रेरित करती है।

जानिए पूजा- विधि

इस दिन सुबह जल्दी स्नान करके, साफ सुथरे वस्त्र पहन लें। इसके बाद माता कूष्मांडा को नमन करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और फिर मां कूष्माण्डा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। फिर माता की कथा सुनें, इनके मंत्रों का जाप करते हुए ध्यान करें। दुर्गा सप्तशती या फिर सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।  फिर अंत में आरती गाएं।

इस चीज का लगाएं भोग

देवी मां को मालपुए का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद यह प्रसाद सभी लोगों में वितरित करना चाहिए। माता को पालपुए का भोग लगाने से सभी मनोकामाएं पूर्ण होती है। साथ ही सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

कूष्‍मांडा देवी मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

इस तरह करें मां कूष्मांडा का ध्यान

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।

कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।

कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

मां कुष्मांडा की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।

सुख पहुँचती हो मां अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।

दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।

मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥