मान्यता है कि दतिया की बगलामुखी माता पीतांबरा राजसत्ता की देवी हैं। उनके दरबार में सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। देश के तमाम क्षेत्रों से श्रद्धालु माता के चौखट पर माथा टेकने जाते हैं। माता पीतांबरा पीठ के चंद्रमोहन दीक्षित उर्फ चंद्रा गुरु कहते हैं कि माता के 108 नाम हैं। इनके नाम का 40 दिन जप करने से बड़े काम बनने की मान्यता है।
देश में है मां बगलामुखी के 3 बड़े मंदिर
भारत में बगलामुखी के तीन ऐतिहासिक मंदिर हैं। कांगड़ा हिमाचल प्रदेश, दतिया और नलखेड़ा मध्यप्रदेश में। माता पीतांबरा देवी का प्राकट्य गुजरात में सौराष्ट्र क्षेत्र माना जाता है। कहते हैं कि इनका प्राकट्य हल्दी देश के जल से हुआ था। हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें माता पीतांबरा कहा जाता है। यहां पर पीले रंग की मिठाई और पीले वस्त्र का बहुत महत्व है। यहां पर शनिवार को दर्शन पूजन करने की विशेष मान्यता है।
1935 में हुई थी मंदिर की स्थापना
चंद्रा गुरु ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना 1935 में तेजस्वी स्वामी ने किया था। इसके पहले देवी के होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। तेजस्वी स्वामी की प्रेरणा से ही मंदिर में चतुर्भुज रूप में माता पीतांबरा के मूर्ति की स्थापना हुई है। चतुर्भुजी देवी के एक हाथ में गदा, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में बज्र और चौथे हाथ में दैत्य की जीभ है।
पीले वस्त्रों से किया जाता है श्रृंगार
माता बगलामुखी देवी का दर्शन एक छोटी खिड़की से होता है। इन्हें छूने की इजाजत नहीं है। माता का श्रृंगार पीले वस्त्रों से किया जाता है। भोग पीले रंग के मिष्ठान से लगता है। माता पीतांबरा के मंदिर में एक तरफ माता धूमावती देवी का मंदिर है। महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए धूमावती देवी की पूजा अर्चना करती हैं। इनकी आरती के जल को भक्तों के ऊपर प्रसाद के रूप में छिड़का जाता है, इसलिए आरती में बहुत भीड़ होती है।
पीठ के संजय शर्मा कहते हैं कि तमाम राजनेता से लेकर कई बड़े अफसर माता के दरबार में हाजिरी लगा चुके हैं। तमाम लोगों की कई मन्नतें भी पूरी हुई हैं। इन दिनों शारदीय नवरात्र में माता की एक झलक पाने के लिए मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ है।