Ambe Ji Ki Aarti: नवरात्र का पावन त्योहार शुरू हो गया है। कहते हैं कि कोई भी पूजा तब तक पूरी नहीं मानी जाती है जब तक आरती न की जाए। इसलिए नवरात्र में भी देवी दुर्गा की पूजा करने के बाद आरती करने का विधान है। कहते हैं कि आरती ही पूजा का एक ऐसा अंग है जिसमें पूजा के दौरान हुई गलतियों की माफी मांगी जाती है। पूजा होने के बाद अपराधों की क्षमा मांगने के लिए इस मंत्र को पढ़ें –

‘आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे॥’

कैसे करें आरती (Aarti Vidhi)
आरती के पांच अंग होते हैं – पहला दीपमाला से, दूसरा जलयुक्त शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथा आम और पीपल के पत्तों से और पांचवा साष्टांग दण्डवत से आरती करना चाहिए। इन पांच क्रियाओं को करने पर ही आरती पूरी मानी जाती है। आरती करते समय देवी दुर्गा की प्रतिमा के चरणों में आरती की थाली को चार बार घुमाएं, दो बार नाभि में, एक बार मुखमंडल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमाएं। यह आरती की सही विधि मानी जाती है।

अम्बे माता की आरती (Ambe Mata Ki Aarti)
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ॥जय अम्बे गौरी…॥

मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय अम्बे गौरी…॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय अम्बे गौरी…॥

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय अम्बे गौरी…॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय अम्बे गौरी…॥

शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय अम्बे गौरी…॥

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय अम्बे गौरी…॥

भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय अम्बे गौरी…॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय अम्बे गौरी…॥

श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय अम्बे गौरी…॥