Sharad Purnima 2024 Vrat Katha, Kahani, Story in Hindi: हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसके अलावा इसे कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन स्नान दान के साथ-साथ मां लक्ष्मी और मां अन्नपूर्णा की पूजा करने का विधान है। इसके अलावा विष्णु जी और चंद्रमा की भी पूजा की जाती है। शरद पूर्णिमा के अलावा असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार आदि राज्यों में शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूजा के रूप में मनाते हैं। अश्विन पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से धन और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ अंत में व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा और कोजागिरी पूर्णिमा की व्रत कथा…
शरद पूर्णिमा 2024 मुहूर्त (Sharad Purnima 2024 Muhurat)
अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर, बुधवार की शाम 7:59 बजे शुरू होगी, जो अगले दिन 17 अक्टूबर को शाम 5:34 बजे पर समाप्त होगी। इसलिए शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
स्नान-दान का समय- सुबह 04 बजकर 42 मिनट से सुबह 05 बजकर 32 मिनट तक स्नान और दान करना शुभ होगा। इसके अलावा इस दिन राहुकाल और भद्रा छोड़कर किसी भी समय स्नान और दान कर सकते हैं।
शरद पूर्णिमा कथा (Sharad Purnima Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। उसकी दो पुत्रियां थी। उसकी बड़ी पुत्री हर पूर्णिमा का व्रत किया करती थी। जबकि छोटी बेटी चंचल मन होने की वजह से कभी भी व्रत पूरा नहीं कर पाती थी। दोनों के जवान होने पर ब्राह्मण ने दोनों का विवाह कर दिया। कुछ समय के बाद बड़ी बहन को एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति होती है। लेकिन छोटी बहन के कोई संतान नहीं हो पाती है। इसके साथ ही उसके पति के कामकाज पर भी बुरा असर पड़ रहा था। ससुराल वालों को जब समझ नहीं आ पाता है कि इस बुरे माहौल की क्या वजह है? तब वह घर में ज्योतिष को बुलाकर पूछते हैं इसकी वजह क्या है? तब ज्योतिष बताते हैं कि इन सब की वजह पूर्णिमा व्रत का पूरा न रखना और अधूरा छोड़ना है। जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। अगर आप पूर्णिमा का व्रत पूरा करेगी, तो आपकी संतान मरेगी नहीं। इस बात को छोटी बहन से अच्छे समय समझ लिया। ऐसे में उसने पूर्णिमा का व्रत किया। लेकिन अगली बार भी जब उसे संतान हुई थी, तो उसकी मृत्यु हो गई।
अपनी बहन से मिलने के बड़ी बहन आई। ऐसे में छोटी बहन से एक पाटा में अपनी मरी संतान को रखकर कपड़े से ढक दिया और उसी के ऊपर अपनी बहन को बैठने के लिए कहा। जैसे ही बड़ी बहन उसमें बैठने की हुई, तो उसका वस्त्र बच्चे को छु गया और वह तुरंत ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने छोटी बहन से कहा कि अच्छा मेरे नीचे रखकर मेरे ऊपर तू अपनी संतान की मौत का लांछन लगाना चाहती थी। इस पर छोटी बहन से कहा कि बहन मेरी संतान पहले ही मर चुकी थी। लेकिन तेरे पुण्य से वह दोबारा जीवित हो गई है। इसके साथ ही छोटी बहन ने पूर्णिमा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया और वह हर साल इस व्रत को विधिवत तरीके से पूरा करने लगी।
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