मंडन मिश्र अपनी पत्नी के साथ माहिस्मती नगरी में रहते थे। मिश्र कितने बड़े विद्वान थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके घर का पालतू तोता भी संस्कृत का श्लोक बोलता था। मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती भी अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध थीं। कहते हैं कि एक बार शंकराचार्य मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ के लिए उनके गांव पहुंचे। जिसके बाद मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ शुरू हुआ। इस शास्त्रार्थ के पहले चरण में शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को पराजित किया। लेकिन अंत में शंकराचार्य को भारती के हाथों पराजित होना पड़ा। जानते हैं शास्त्रार्थ का यह प्रसंग।

मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच हुए शास्त्रार्थ में शंकराचार्य विजयी हुए। लेकिन मिश्र की पत्नी भारती ने शंकराचार्य से कहा, मंडन मिश्र विवाहित हैं। हम दोनों मिलकर अर्धनारीश्वर की तरह एक इकाई बनाते हैं। आपने अभी आधे भाग को हराया है। अभी मुझसे शास्त्रार्थ करना बाकी है। कहते हैं कि शंकराचार्य ने उनकी चुनौती स्वीकार की। दोनों के बीच जीवन-जगत के प्रश्नोत्तर हुए। शंकराचार्य जीत रहे थे। लेकिन अंतिम प्रश्न भारती ने किया। उनका प्रश्न गृहस्थ जीवन में स्त्री-पुरुष के संबंध के व्यावहारिक ज्ञान से जुड़ा था। शंकराचार्य को उस जीवन का व्यवहारिक पक्ष मालूम नहीं था। उन्होंने ईश्वर और चराचर जगत का अध्ययन किया था। वे अद्वैतवाद को मानते थे। भारती के प्रश्न पर उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली। अंत में सभा मंडप ने विदुषी भारती को विजयी घोषित किया।

कौन थे मंडन मिश्र?: मंडन मिश्र गृहस्थ जीवन का पालन करने वाले मिथिला के प्रकांड विद्वान  थे। ये कुमारिल भट्ट के शिष्य थे। मूल रूप से एक मैथिल ब्राह्मण परिवार में जन्मे मंडन मिश्र सहरसा जिले के महिषी गांव के रहने वाले थे। इनके द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ ब्रहमसिद्धि है। मंडन मिश्र की कृतियों में निधि विवेक, भावना विवेक, विभ्रम विवेक, मीमांसा सुत्रानुमनी, स्फोटसिद्धि, ब्रह्मसिद्धि आदि प्रसिद्द हैं। मीमांसा के प्रसिद्ध विद्वान् मण्डन मिश्र को व्याकरण प्रसिद्ध पुस्तक “स्फोटसिद्धि” के लेखन का श्रेय भी दिया जाता है।