Shaniwar ke Upay Mantra : वैदिक ज्योतिष में शनि देव को कर्मफल दाता और न्यायाधीश कहा जाता है। साथ ही शनि देव हर व्यक्ति को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। वहीं शनि देव की ढैय्या और साढ़ेसाती व्यक्ति के ऊपर आती है, जिसमें वह व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक कष्ट प्रदान करते हैं। वहीं यहां हम ऐसे मंत्रों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका जाप शनिवार को करने से शनि देव के अशुभ प्रभाव से बचा जा सकता है। आइए जानते हैं इन मंत्रों के बारे में…
1- शास्त्रोंं के अनुसार शनि देव पत्नी नाम मंत्र से काफी प्रसन्न होते हैं। कहा जाता है कि शनि देव की 8 पत्नियां थीं। इनके नाम ध्वजिनी, धामिनी, कंकाली, कलहप्रिया, कंटकी, तुरंगी, महिषी और अजा हैं। इन्हीं के आधार पर शनि पत्नी नाम मंत्र है, जिसे प्रत्येक शनिवार जपने से शनि देव का आशार्वाद पाया जा सकता है। साथ ही इस मंत्र के जाप करने से वैवाहिक जीवन मधुर रहता है। वहीं जीवनसाथी के साथ अच्छा तालमेल बना रहता है।
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली।
कंटकी कलही चाथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनेर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन पुमान्।
दुःखानि नाशयेन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखम।।
2- शनि देव के वैदिक मंत्र का जाप करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही आरोग्य की प्राप्ति होती है। वहीं शनि दोष से मुक्ति मिलती है।
ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।।
3- अगर कुंडली में शनि की स्थिति नकारात्मक हो। साथ ही करियर और कारोबार में रुकावट आ रही हो तो शनि गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से शनि देव का आशीर्वाद मिलता है।
ॐ भग-भवाय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोदयात्।
ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोदयात्।।
4-शनि की साढ़ेसाती, ढैया, महादशा और नकारात्मक स्थिति से बचने के लिए शनिवार के दिन दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही रुके हुए कार्य बनते हैं।
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।
