Shani Stotra Path: हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शनिवार का दिन विशेष रूप से न्याय के देवता शनिदेव के लिए समर्पित माना गया है। शनि देव की साढ़ेसाती और ढैय्या के बारे में सुनते ही कई लोग डर जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब शनि की चाल बदलती है तो कुछ लोगों पर इसका बुरा असर होता है। लेकिन, अगर आप शनि देव की पूजा सही तरीके से करेंगे तो आप इन प्रभावों से बच सकते हैं। इसके अलावा शनिवार के दिन दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करना सबसे बेहतर माना गया है। मान्यता है कि सही तरीके से इसका पाठ करने से शनि देव की कृपा मिलती है और उनके कुप्रभाव से रक्षा होती है। तो चलिए जानते हैं कि दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ कैसे करें और यहां पढ़ें पूरी दशरथकृत शनि स्तोत्र और शनिदेव की आरती।
इस विधि से करें पाठ
दशरथकृ पाठ की शुरुआत शनिवार के दिन से करनी चाहिए। शनिवार के दिन सबसे पहले स्नान करके साफ सुथरे वस्त्र धारण करें। फिर पूजा के लिए एक काले रंग का कपड़ा बिछाएं और शनि देव की मूर्ति या चित्र रखें। साथ ही, धूप या अगरबत्ती जलाएं और सरसों के तेल का दीपक लगाएं। अब दशरथकृत शनि स्तोत्र का मन से पाठ करें। ऐसा करने से शनि देव की कृपा मिलती है।
दशरथकृत शनि स्तोत्र (Dashrathkrit Shani Stotra/ Shani Stotra)
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
शनि देव की आरती (Shani Aarti)
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
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