Remedies for Shani Sadesati: शनि साढ़ेसाती की वजह से लोगों को कई प्रकार के कष्ट सहने पड़ते हैं। कई लोग इन दुखों और कष्टों से इतना परेशान हो जाते हैं कि वह जिन्दगी से उम्मीद करना ही छोड़ देते हैं। ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि शनि साढ़ेसाती से मिलने वाले प्रकोप से बचने के लिए उपाय किए जाएं। मान्यता है कि दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि साढ़ेसाती की पीढ़ाओं से मुक्ति मिलती हैं।
शनि स्तोत्र पाठ की विधि (Shani Stotra Paath Ki Vidhi)
स्नानादि पवित्र हो साफ कपड़े पहनें।
एक चौकी लें। उस पर काले रंग का कपड़ा बिछाएं।
फिर शनिदेव का चित्र चौकी पर स्थापित करें।
इसके बाद सरसों के तेल का दीपक जलाकर धूप और अगरबत्ती जलाएं।
अब काले रंग के आसन पर बैठकर शनिदेव के स्वरूप का ध्यान करें।
फिर दशरथकृत शनि स्तोत्र का सच्चे मन से पाठ करें।
पाठ करने के बाद ॐ प्रां प्रीं प्रौं स शनैश्चराय नम: का जाप करें।
संभव हो तो इस मंत्र का 11 माला जाप करें। अगर 11 माला न कर पाएं तो कम-से-कम एक माला नाम जाप जरूर करें।
इसके बाद शनिदेव को काले रंग के पेय पदार्थ या मिठाई का भोग लगाएं।
फिर शनिदेव को दण्डवत प्रणाम कर उनसे प्रार्थना करें कि वह आपके जीवन में शनि साढ़ेसाती की वजह से आने वाली बाधाओं को दूर करें और आपके जीवन में खुशियां भर दें।
स्तोत्र का पाठ करने के बाद कुष्ठ रोगियों को काले रंग के कपड़े का दान करें। आप चाहें तो काले रंग रुमाल भी दान कर सकते हैं। साथ ही ढाई किलो उड़द की दाल भी दान करें।
दशरथकृत शनि स्तोत्र (Dashrathkrit Shani Stotra/ Shani Stotra)
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
