शनिदेव को कर्म का देवता माना जाता है। वो हमारे कर्मों का उचित फल हमें देते हैं। यह मान्यता है कि हमारे जीवन में आ रही परेशानी, आर्थिक नुक्सान आदि के पीछे शनि का प्रकोप होता है। शनि दंड के देवता हैं इसी कारण वो हमें हमारे कर्मों का फल देते हैं। लेकिन जबतक हम कोई ग़लती नही करते, हम शनि के प्रकोप से बचे रहते हैं।
शनि साढ़े साती और ढैय्या से जीवन में बदलाव जरूर आता है लेकिन यह जरूरी नहीं कि बदलाव नकारात्मक ही हों। अच्छा बुरा बदलाव आपकी जन्मकुंडली पर निर्भर करता है। शनि की साढ़े साती और ढैय्या को लेकर मान्यता है कि इससे जातक को शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। इससे बचने के लिए और शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय भी सुझाए गए हैं-
शनिवार को रखें व्रत- शनिदेव के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए शनिवार का व्रत करने की मान्यता है। इस दिन काली उड़द की दाल को दान में देने का विशेष महत्व है। काले कपड़ों को भी दान में दिया जाता है। इस दिन व्रतधारियों को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।
नीलम की अंगूठी करें धारण- ज्योतिष के परामर्श से किसी शुभ मुहूर्त में नीलम का रत्न अंगूठी के रूप में धारण करना शुभ माना जाता है। इससे शनि का प्रकोप ख़त्म होता है और हम शारीरिक और मानसिक कष्टों से बचे रहते हैं।
भगवान हनुमान की नियमित आराधना- शनि साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव को खत्म करने के लिए भगवान हनुमान की आराधना को श्रेष्ठ माना जाता है। इसके लिए आप किसी भी शनिवार से हनुमान जी की 43 दिनों तक लगातार चलने वाली आराधना आरंभ करें। शनिवार से शुरू कर आप हर रोज 43 दिनों तक भगवान हनुमान के मंदिर में सिंदूर, चमेली का तेल, लड्डू और नारियल चढ़ाएं। मान्यता है कि सुंदरकांड का पाठ करने से भी लाभ मिलता है।