Shani Sade Sati ke Upay : ज्योतिष में शनि देव को न्यायाधीश माना जाता है। वहीं शनि देव व्यक्ति को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। साथ ही मान्यता है कि जो व्यक्ति हनुमान जी की पूजा करता हैं, उनको शनि देव के कष्टों का सामना नहीं करना पड़ता है। शनि देव उस व्यक्ति पर शनि साढ़े साती और और शनि ढैय्या का अशुभ प्रभाव नहीं डालते हैं। इसलिए जिन लोगों की कुंडली में शनि साढ़े साती और शनि ढैय्या चल रही होती है उन्हें सलाह दी जाती है कि वह भगवान हनुमान का पूजन करें। वहीं यहां हम आपको ऐसे स्त्रोत के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका पाठ करने से शनि दोष से बच सकते हैं, आइए जानते हैं इस स्त्रोत के बारे में…
हनुमद् वडवानल स्तोत्रं (Hanumad Vadvanal Stotra)
विनियोग
ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः,
श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं,
मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे
सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम्
आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं
श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।
ध्यान
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम।
सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय।।
वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र।
उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र।।
अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार।
सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद।।
सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख।।
निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन।
भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर।।
वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र।
उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र।।
अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार।
सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद।।
सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख।।
निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन।
भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर।।
परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु।
शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय।।
नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान्।
यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते।
राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र।।
पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय।
नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।।
।।इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं।।