वैदिक ज्योतिष में शनि देव को नवग्रहों में विशेष स्थान प्राप्त है। शनि देव व्यक्ति को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। मतलब अगर आप किसी गरीब या मजदूर को सताते हैं। जो शनि देव कुपित हो जाते हैं और व्यक्ति को नराकात्मक फल प्रदान करते हैं। क्योंकि शनि देव को ग्रहों में न्याायधीश का पद प्राप्त है। वहीं जिन लोगों शनि साढ़ेसाती और ढैय्या से प्रभावित होते हैं उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे बचने के लिए कई प्रकार के ज्योतिष उपाय बताए गए हैं। इसमें शनिवार व्रत, शनि चालीसा पाठ, शनि मंत्रों का जाप, शनि से जुड़ी वस्तुओं का दान, गरीब असहाय लोगों की मदद आदि शामिल हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं शनि कवच के बारे में। जिसका नियमित पाठ करके आप शनि के दुष्प्रभावों से बच सकते हैं। आइए जानते हैं इस कवच के बारे में। 

विनियोग :-

अस्य श्रीशनैश्चर कवच स्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द: शनैश्चरो देवता । 
श्रीं शक्ति: शूं कीलकम्, शनैश्चर प्रीत्यर्थे पाठे विनियोग: ।।

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।1।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ।।2।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ।।3।।

ॐ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन: ।।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज: ।।4।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा ।।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज: ।।5।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता ।।6।।

नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा ।।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा ।।7।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल: ।।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन: ।।8।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य: ।।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज: ।।9।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा ।।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि: ।।10।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ।।11।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु: ।।12।।

आपको बता दें कि इस कवच को “ब्रह्माण पुराण” से लिया गया है, जिन व्यक्तियों पर शनि की ग्रह दशा का प्रभाव बना हुआ है। मतलब जो लोग शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती के प्रभावित हैं। उन्हें इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। जो व्यक्ति इस कवच का पाठ कर शनिदेव को प्रसन्न करता है उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस कवच का पाठ अगर व्यक्ति स्वंय नहीं कर पाए तो उसे किसी योग्य ब्राह्मण से करवाएं। वहीं अगर जन्म कुंडली में शनि ग्रह के कारण अगर कोई दोष भी है तो वह इस कवच के नियम से किए पाठ से दूर हो जाते हैं।