Pradosh Vrat katha: प्रदोष व्रत भगवान शिव की उपासना के लिए रखा जाता है। सावन में आने वाले इस व्रत का महत्व और भी ज्यादा बड़ जाता है। 29 जुलाई का दिन शिव भक्तों के लिए खास रहने वाला है। क्योंकि एक तो इस दिन सावन का दूसरा सोमवार है साथ भगवान शिव के लिये रखा जाना वाला व्रत प्रदोष व्रत भी है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के संकटों से छुटकारा मिलता है। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है। यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों की त्रयोदशी के दिन आता है। इस व्रत को रखने आर्थिक संकट से निवारण मिलता है। अविवाहित लोगों द्वारा ये व्रत करने से अवश्य ही उनके विवाह का योग बन जाता है।
प्रदोष व्रत की कथा- स्कन्द पुराण में शनि प्रदोष व्रत की कथा का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षाटन कर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया। लेकिन वह नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है। दरअसल वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था, जिसे शत्रुओं ने उसके राज्य से बाहर कर दिया था। एक भीषण युद्ध में शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। जिसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई। नदी किनारे बैठा वह बालक उदास लग रहा था, इसलिए ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया। जिसके बाद राजकुमार भी उसके साथ अति प्रसन्न था। कुछ समय के बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई। शाण्डिल्य उस वक्त के प्रतापी ऋषि थे, जिन्हें हर कोई मानता था। ऋषि ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे। राजा तो युद्ध में मारे गए लेकिन बाद में उनकी रानी यानी कि उस बालक की माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। यह सुन ब्राह्मणी बेहद दुखी हुई, लेकिन तभी ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। सभी ने ऋषि द्वारा बताए गए पूर्ण विधि-विधान से ही व्रत सम्पन्न किया, लेकिन वह नहीं जानते थे कि यह व्रत उन्हें क्या फल देने वाला है।

