Sawan 2025: हिंदू धर्म में सावन माह का विशेष महत्व है। यह साल का पांचवां महीना होता है, जिसे श्रावण मास भी कहा जाता है। यह महीना पूरी तरह से भगवान शिव की पूजा को समर्पित होता है। ऐसा माना जाता है कि इस महीने में सच्चे मन से शिव की पूजा करने से सभी दुखों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। शिव पुराण में कहा गया है कि सावन के महीने में शिवलिंग पर जल अर्पित करने से विशेष पुण्य मिलता है। भगवान शिव को जल अर्पण करना उन्हें शीतलता देने और प्रसन्न करने का माध्यम माना गया है। इसके अलावा इस मास में रुद्राभिषेक या जलाभिषेक करने से शिवजी जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
सावन में शुरू होती है कांवड़ यात्रा
सावन शुरू होते ही पूरे देश में शिव भक्तों द्वारा कांवड़ यात्रा की जाती है। भक्त नंगे पांव दूर-दूर से गंगाजल लेकर आते हैं और उसे शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। साथ ही, व्रत रखते हैं और पूरे महीने भक्ति भाव में लीन रहते हैं। यह यात्रा श्रद्धा और आस्था का अद्भुत प्रतीक होती है।
श्रावण मास नाम कैसे पड़ा?
हिंदू पंचांग के अनुसार, जब यह महीना शुरू होता है तो उस समय चंद्रमा ‘श्रवण नक्षत्र’ में होता है। इसी कारण इस महीने का नाम श्रावण रखा गया। समय के साथ ‘श्रावण’ को बोलचाल की भाषा में ‘सावन’ कहा जाने लगा।
शिवजी को क्यों प्रिय है सावन?
शिवपुराण और पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह महीना भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना है। एक मान्यता यह भी है कि माता पार्वती ने सावन के महीने में ही भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था और सोमवार का व्रत रखा था। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया था। तभी से सावन के सोमवार का विशेष महत्व है।
समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तो उसमें सबसे पहले ‘हलाहल’ नामक विष निकला। उस विष से सृष्टि को खतरा था। तब भगवान शिव ने उस विष को पी लिया, जिससे उनका गला नीला हो गया और वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। तभी से सावन में शिवजी को जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
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