Shivling Parikrama Niyam: सावन मास में भगवान शिव के साथ शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व है। श्रावण मास के दौरान भक्त शिवलिंग में बेलपत्र, धतूरा, दुर्वा, भांग जैसी कई चीजें अर्पित करते हैं। इसके साथ ही सफेद चंदन लगाने की परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल का आशीर्वाद देते हैं। शिव मंदिर में जब जाते हैं, तो शिवलिंग में जल चढ़ाने के साथ-साथ परिक्रमा जरूर करते हैं। शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग की परिक्रमा करते समय कुछ नियमों का जरूर पालन करना चाहिए, वरना शिव जी के अलावा मां पार्वती रुष्ट हो जाती हैं।
शिव पुराण के अनुसार, कभी भी शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए यानी कभी भी जलहरी को लांघना नहीं चाहिए। जानिए इसका कारण सहित अन्य नियम।
क्यों नहीं लांघनी चाहिए जलहरी?
शिवपुराण के अनुसार जलहरी को भूलकर भी नहीं लांघना चाहिए। इससे आपको घोर पाप पड़ता है। दरअसल, जलहरी को शक्ति और ऊर्जा का भंडार माना जाता है। शिवलिंग पर अभिषेक करने के बाद जिस स्थान से जल प्रवाहित होता है इसे जलधारी, निर्मली या फिर सोमसूत्र कहा जाता है। इसके साथ ही जलहरी में भगवान गणेश, कार्तिकेय जी, शिव पुत्री अशोक सुंदरी के साथ मां पार्वती का वास होता है। ऐसे में जलहरी को लांघने से शारीरिक, मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। शिवलिंग की पूरी परिक्रमा करने से शरीर में पांच तरह के बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं।
किस तरह करें शिवलिंग की परिक्रमा
शिव पुराण के अनुसार, शिवलिंग की परिक्रमा करते समय कुछ नियमों का जरूर पालन करना चाहिए। हमेशा शिवलिंग की परिक्रमा अर्ध चंद्राकार रूप में करना चाहिए। शिवलिंग की परिक्रमा करते समय दिशा का ध्यान जरूर रखें। शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं ओर से शुरू करें और जलाधारी तक जाकर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरी ओर से फिर से परिक्रमा पूर्ण करें। कभी भी परिक्रमा दाएं ओर से शुरू न करें।
शिवलिंग की परिक्रमा करने का महत्व
शिव पुराण के अनुसार, शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। बता दें कि शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि शिवलिंग की तासीर को गर्म होती है। इसी के कारण शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है, जिससे उन्हें ठंडक मिले।
