सर्व मंगला देवी को सुख की देवी माना जाता है। सालभर यात्रियों की भीड़ यहां रहती है। कार्तिक और चैत्र माह के नवरात्र में यहां विशेष आयोजन होते हैं। इस दौरान सुख, संतोष की तलाश में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर के नामकरण के पीछे स्थानीय जानकर नीलू भारद्धाज बताते हैं कि पूर्व में यह पूरा क्षेत्र बेल वृक्षों की बहुतायत वाला था। इस वजह से पहले बिलोन और बाद में अपभ्रंश होकर बेलौन कहलाने लगा। मान्यता है कि शुक्ल पक्ष की अष्टमी को यहां दर्शन करने से अभीष्ठ फल की प्राप्ति होती है।

मंदिर के समीप ही गंगा नदी के राजघाट, कलकतिया एवं नरौरा घाट होने से यहां भक्तों का आगमन निरंतर बना रहता है। मां बेलोन भवानी के प्रादुर्भाव को लेकर कोई ऐतिहासिक दस्तावेज तो मौजूद नहीं है, लेकिन जनश्रुति एवं पौराणिक दृष्टि से मां बेलोन को देवाधिदेव महादेव की अर्द्धांगिनी पार्वती का स्वरूप माना जाता है। इसे लेकर दो अलग-अलग दंत कथाएं सामने आती हैं। पहले प्रसंग के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती एक बार पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकले। भ्रमण करते-करते वह गंगा नदी के पश्चिमी छोर के पास स्थित बेल के वन से घिरे बिलबन क्षेत्र में आ गए। यहां पार्वती को एक शिला दिखाई दी। वह इस पर बैठने के लिए लालायित हुर्इं। भगवान शिव की अनुमति मिलने पर वह शिला पर बैठ गईं।

मां पार्वती के विश्राम करने पर भगवान शिव भी पास ही एक वटवृक्ष के पास आसन लगाकर बैठ गए। बताते हैं कि इसी मध्य वहां एक बालक आया और वह शिला पर बैठकर आराम कर रहीं मां पार्वती के पैर दबाने लगा। यह देख आश्चर्य-मिश्रित भाव व्यक्त करते हुए पार्वती ने महादेव से पूछा कि यह बालक कौन है? तब महादेव ने राजा दक्ष के यज्ञ प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए कहा कि पिता के अपमानजनक व्यवहार से दुखी होकर वह जब पूर्व जन्म में तुम्हारी देह को लेकर आकाश मार्ग से गुजर रहे थे, तब सती के शरीर से खून की कुछ बूंद इस शिला पर गिरीं। यह बालक उसी का अंश है। यह बालक तभी से आपके दर्शन की इच्छा के साथ उपासना कर रहा था। आज तुम्हारे दर्शनों से इसकी उपासना पूरी हो गई।

इससे भाव-विह्रल होकर मां पार्वती ने बालक को गोद में उठा लिया। वह इस बालक के साथ कुछ समय तक यहां रहीं। उसी समय भगवान शिव ने कहा कि अब से यह शिला साक्षात तुम्हारा स्वरूप होकर मां सर्वमंगला देवी के नाम से विख्यात होगी। जो व्यक्ति शुक्ल पक्ष की बारह अष्टमी तुम्हारे दर्शन करेगा, उसे मनोवांछित फल प्राप्त होगा। यह बालक लांगुरिया के नाम से जाना जाएगा। इसके दर्शन से ही मां सर्वमंगला देवी की यात्रा पूरी होगी। जब मां पार्वती यहां से चलने को हुर्इं तो उनके शरीर से एक छायाकृति निकली और शिला में समा गई जिससे शिला एक मूर्ति के रूप में बदल गई। इसके लगभग 250 गज दूर जहां भगवान शिव ने विश्राम किया था। वह स्थान वटकेश्वर महादेव मंदिर हो गया। यह प्रसंग सतयुग का है।

वर्तमान में बेलोन मंदिर नरौरा शहर से लगभग पांच किमी और अलीगढ़ के औद्योगिक शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर है। मंदिर पूजा और दर्शन के लिए सुबह छह बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम को पांच बजे से शाम को आठ बजे तक खुला रहता है। यह मंदिर अपने होली उत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां होली को टेसू के फूलों के साथ मनाया जाता है। मंदिर के सेवायत नरेश वशिष्ठ बताते हैं कि शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के बाद आने वाली त्रयोदशी तिथि के दिन माता का जन्मदिन मनाया जाता है।

माता के जन्मदिन के दौरान यहां माता की झांकियां निकाली जाती है और बड़ स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां के स्थानीय लोग माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद अपने घर जाने से पहले पहले यहां मां के दरबार में हाजरी लगाते हैं। यहां माता को सभी 16 श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं। भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं माता यहां आने वाले हर भक्त की मुराद माता पूरी करती हैं। जो भी व्यक्ति सच्चे मन से माता के दर्शनों के लिए यहां आता है, माता उसे मनोवांछित वरदान प्रदान करती हैं।