Sarva Pitru Amavasya 2025 Date(कब है सर्व पितृ अमावस्या 2025): हिंदू धर्म में सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन सभी पितरों को श्रद्धा और तर्पण के माध्यम से विदाई दी जाती है। पंचांग के अनुसार, हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्व पितृ अमावस्या मनाई जाती है। यह दिन उन पितरों के लिए विशेष होता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है या जिन्हें किसी कारणवश समय पर श्राद्ध नहीं किया गया। इसलिए इसे सभी पितरों की अमावस्या कहा जाता है।
इस वर्ष सर्व पितृ अमावस्या और भी खास मानी जा रही है, क्योंकि इसी दिन साल का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण भी पड़ रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इस दिन श्राद्ध करना शुभ होगा या नहीं। आइए जानते हैं इसकी तिथि, शुभ मुहूर्त, तर्पण का समय और महत्व।
सर्व पितृ अमावस्या कब है? (Sarva Pitru Amavasya 2025 Date)
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 21 सितंबर 2025 सुबह 12:16 बजे से शुरू होकर 22 सितंबर 2025 सुबह 1:23 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार 21 सितंबर 2025 को सर्व पितृ अमावस्या मनाई जाएगी।
शुभ मुहूर्त
कुतुप मुहूर्त: प्रातः 11:50 से 12:38 बजे तक
रोहिणी मुहूर्त: दोपहर 12:38 से 01:27 बजे तक
सूर्य ग्रहण पर तर्पण कर सकते हैं कि नहीं (Surya Grahsn Sarva Pitru Amavasya 2025)
साल का आखिरी और दूसरा सूर्य ग्रहण 21 सितंबर को लगने वाला है, दो रात में करीब 11 बजे आरंभ होगा और देर रात 3 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। ऐसे में रात के समय से आरंभ होने के कारण दिनभर आप पितरों का तर्पण कर सकते हैं।
सर्व पितृ अमावस्या पर तर्पण का शुभ समय (Sarva Pitru Amavasya 2025 Tarpan Muhurat)
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, सर्व पितृ अमावस्या पर पितरों का तर्पण दोपहर के समय करना शुभ माना जाता है। इस दिन तर्पण का समय दोपहर 01:27 से 03:53 बजे तक रहेगा।
सर्व पितृ अमावस्या पर किसके लिए करें श्राद्ध?
सर्व पितृ अमावस्या के दिन सभी पितरों का तर्पण और श्राद्ध करना पुण्यकारी होता है। विशेष रूप से जिन लोगों को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, वे इस दिन श्राद्ध कर सकते हैं। इससे पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है।
सर्व पितृ अमावस्या पर घर पर तर्पण कैसे करें? (Sarva Pitru Amavasya 2025 Tarpan Vidh)
- प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर लें और पूरे दिन के लिए संकल्प लें।
- सूर्य देव को अर्घ्य देकर देवी-देवताओं की पूजा करें।
- दोपहर करीब 12 बजे दक्षिण दिशा की ओर मुख करके घुटनों को जमीन पर टिकाकर बैठें।
- तांबे के लोटे में जौ, तिल, चावल, गाय का कच्चा दूध, सफेद फूल, गंगाजल और पानी मिलाकर रखें।
- कुशा हाथ में लेकर अंगूठे के माध्यम से जल अर्पित करें। इसे करीब 11 बार करें और पितरों का ध्यान करें।
- गाय के गोबर से बने कंडे पर गुड़, घी, खीर-पूरी आदि अर्पित कर भोग लगाएं।
- जल लेकर अंगूठे से पितरों को अर्पित करें।
- भोजन का अंश गाय, कुत्ते, कौए, चींटी और देवताओं के लिए अलग-अलग निकालें।
- अंत में दान और दक्षिणा दें तथा जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
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