Sarva Pitru Amavasya 2024 Date: हिंदू धर्म में सर्व पितृ अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन पितरों को विदाई दी जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्व पितृ अमावस्या कहा जाता है। इस दिन उन सभी पितरों का पिंडदान या तर्पण किया जाता है, जिनकी मृत्यु की तिथि याद न हो या फिर किसी कारण पहले करना छूट गया हो। इसलिए इसे सभी पितरों की अमावस्या कहा जाता है। इस साल की सर्व पितृ अमावस्या काफी खास है, क्योंकि इस दिन साल का आखिरी और दूसरा सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस दिन श्राद्ध करना शुभ होगा कि नहीं। आइए जानते हैं सर्व पितृ अमावस्या की तिथि, किस शुभ मुहूर्त में करें तर्पण के साथ महत्व…

सर्वपितृ अमावस्या कब है? (Sarva Pitru Amavasya 2024 Date)

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर 2024 को सुबह 9:34 बजे प्रारंभ हो रही है, जो 2 अक्टूबर 2024 को सुबह 2:19 मिनट पर समाप्त होगी।  उदय तिथि के हिसाब से सर्व पितृ अमावस्या 2 अक्टूबर 2024 को होगी।
कुतुप मुहूर्त- सुबह 11:45 बजे से दोपहर 12:24 बजे तक है।
रोहिण मुहूर्त– दोपहर 12:34 बजे से दोपहर 1:34 बजे तक होगा।

सर्वपितृ अमावस्या में तर्पण का मुहूर्त (Sarva Pitru Amavasya 2024 Tarpan Muhurat)

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान पितरों का तर्पण दोपहर के समय करना शुभ माना जाता है। ऐसे में सर्व पितृ अमावस्या यानी 2 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 21 मिनट से  अपराह्न 3:43 बजे तक तर्पण कर सकते हैं।

सर्व पितृ अमावस्या पर इनका कर सकते हैं श्राद्ध

सर्व पितृ अमावस्या के दिन सभी पितरों का तर्पण, श्राद्ध करना शुभ होता है। जिन जातकों को अपने पितरों के मृत्यु की तिथि याद न हो, तो वह सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकते हैं।

घर पर ऐसे करें श्राद्ध और तर्पण

सर्व पितृ अमावस्या को सुबह जल्दी उठकर सभी कामों से उठकर स्नान कर लें। इसके साथ ही पितरों की तृप्ति के लिए दान और श्राद्ध करने का संकल्प ले लें। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देने के साथ देवी-देवता की पूजा कर लें। दोपहर करीब 12 बजे दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पैर को मोड़कर , घुटनों को जमीन में टिका कर बैठ जाएं। इसके बाद तांबे के लोटे में जौ, तिल, चावल, गाय का कच्चा दूध, सफेद फूल, पानी और गंगाजल डाल लें। फिर हाथ में कुशा लेकर दोनों हाथों में जल भरकर अपने अंगूठे के माध्यम से जल  गिराएं। इस तरह करीब 11 बार करें और अपने पितरों का ध्यान करते रहें। इसके बाद पितरों को भोग लगाएं। इसके लिए एक गाय के गोबर के कंडे को जलाएं और उसमें गुड़, घी, खीर-पूरी आर्ति अर्पित करें। इसके बाद हथेली में जल लेकर अंगूठे के माध्यम से पितरों जल अर्पित कर दें। इसके बाद गाय, कुत्ते, कौएं, चींटी और देवता को अलग-अलग भोजन निकाल रख दें।  अंत में आप दान-दक्षिणा करने के साथ जरूरतमंदों को भोजन कराएं।

डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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