पौष माह के कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन सफला एकादशी का व्रत किया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार ये साल की आखिरी एकादशी होगी। इस दिन के लिए मान्यता है कि इस एकादशी के दिन व्रत करने से साल की सभी एकादशी के तप का फल मिलता है। सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पूजन की मान्यता है। पूजा के बाद ब्रह्माणों को दान देना की भी मान्यता है। इस दिन कई लोग पूरी रात जागरण करते हैं। माना जाता है कि इस दिन व्रत करने वालों को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। एकादशी का व्रत कई पीढ़ियों का पाप दूर होता है।
व्रत कथा-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि एक महिष्मान नाम का राजा था, उसके चार पुत्र थे। राजा का सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक महापापी था। वो हमेशा बुरे काम करता था और पिता का धन व्यर्थ करता रहता था। इसके साथ ही वो ब्रह्मणों की निंदा और उन्हें परेशान किया करता था। उसके पिता को इन कर्मों के बारे में पता चला तो उन्होनें अपने राज्य से लुम्पक को निकाल दिया। लुम्पक को तब भी समझ नहीं आया और उसने अपने पिता की नगरी में चोरी करने की ठान ली। वो दिन में राज्य से बाहर रहता था और रात में जाकर चोरी करता था।
राजा के सिपाही उसे पकड़ते लेकिन उन्हीं का पुत्र मानकर छोड़ देते थे। उसके पाप बढ़ते जा रहे थे अब वो लोगों को नुकसान भी पहुंचाने लगा था। जिस वन में वो रहता था, वहां वो एक पीपल के पेड़ के नीचे रहता था। पौष माह की दशम तिथि के दिन वो ठंड से बेहोश हो गया। अगले दिन जब उसे होश आया तो कमजोरी के कारण वो कुछ भी नहीं खा पाया और आस पास मिले फल उसने पीपल की जड़ में रख दिए। इस तरह से अनजाने में उससे एकादशी का व्रत पूरा हो गया। इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और उसके सभी पाप माफ कर देते हैं। जब उसे पता चलता है कि मुझसे ये कर्म हो गया है तो उसे गलती का अहसास होता है और अपने पिता से माफी मांगता है। राजा उसे माफ कर देते हैं।
