Sankashti Chaturthi 2019 Dates and Time: प्रत्येक माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली चतुर्थी को ही संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। यह तिथि पूर्णिमा के बाद मनाई जाती है। इस बार संकष्टी चतुर्थी शुक्रवार 15 नवंबर को यानी आज है। यह खास दिन बप्पा यानी भगवान गणेश का होता है। इस दिन गणपति की विशेष पूजा कर मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद मांगते हैं। मान्यता है कि आज जो पूरे विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा करता है उसकी न सिर्फ मनोकामनाएं पूरी होती हैं बल्कि स्वास्थ्य से जुड़े हर संकट दूर होते हैं। अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।इसलिए हम आपको संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पूजन विधि और खास मंत्र के बारे में बताएंगे…
संकष्टी चतुर्थी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त (Sankashti Chaturthi Shubh Muhurat)
संकष्टी के दिन चन्द्रोदय -07:48 (शाम)
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – 15 नवंबर को 07:46 (शाम)
चतुर्थी तिथि समाप्त – 16 नवंबर को 07:15 (शाम)
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि (Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
- भगवान गणेश के इस खास दिन पर विशेष पूजा कर मन की मुराद पूरी होने की चाहत रखने वालों को व्रत रखना होता है।
- संकष्टी चतुर्थी पर सुबह जल्दी (सूर्योदय) उठ जाएं।
- स्नान करें और लाल या पीले रंगे के वस्त्र धारण करें।
- एक लाल कपड़ा लें। इस पर गणपति की तस्वीर को रखें।
- पूजन के समय आपको चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
- इसके बाद सबसे पहले बप्पा के सामने एक घी का दीपक जलाएं और लाल फूल चढ़ाएं।
- पूजा की थाली में चावल, मौली, रोली, गुड़, लड्डू, तांबे के लोटे में जल रख लें। साथ ही प्रसाद में केला और लड्डू रख लें।
- इसके बाद भगवान गणेश के बाद नीचे दिए गए संकटनाशन स्तोत्र का जप करें। अगर संभव हो तो इसे 11 बार करें। यह जप करने से कष्टों मिटेंगे आपके लिए धन प्राप्ति के दरवाजे खुलने लगेंगे।
Highlights
ये चतुर्थी हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी तो अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की विधि विधान पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है। जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके और सेहत की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जाए।
– ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति। करों दूर क्लेश।।
– ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।
– ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।
– ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।’
– ‘ॐ नमो हेरम्ब मद मोहित मम् संकटान निवारय-निवारय स्वाहा।’
– ‘ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा’।
भगवान गणेश को तिल से बनी वस्तुओं बहुत पसंद होती है। तिल-गुड़ के लड्डू तथा मोदक का भोग लगाएं। 'ऊं सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित है। विधिवत तरीके से गणेश पूजा करने के बाद गणेश मंत्र 'ऊं गणेशाय नम:' अथवा 'ऊं गं गणपतये नम: की 108 बार जाप करें। सायंकाल में व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुनें और सुनाएं। तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें।
गण मंत्र : "ॐ भालचन्द्राय नमः"
यह मंत्र गणपति महाराज को समर्पित है। इस मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में निराशा नहीं रहती है। कोई भी अप्रिय घटना नहीं घटती है। इस मंत्र के जाप से घर में खुशहाली का वातावरण बना रहता है। व्यक्ति प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति करता है। व्यक्ति के शरीर की सुंदरता बढ़ती है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
शाम के समय पूजा के स्थान पर लाल या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर उसपर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद भगवान गणेश को जल, दूर्वा, अक्षत, लड्डू, पान, धूप इत्यादि अर्पित करें। ओम गं गणपतये नम: मंत्र का जाप करने के बाद भगवान गणपति की आरती उतारें। इसके बाद चंद्रमा के दर्शन होने पर शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद प्रसाद सब लोगों में प्रसाद बांटकर स्वयं भी ग्रहण करें।
यदि किसी जातक के जीवन में लगातार परेशानियां आ रही हैं तो उसे संकष्टी चतुर्थी के दिन शक्कर मिली दही में छाया देखकर भगवान गणेश को अर्पित करनी चाहिए। इससे रुके हुए काम बन जाते हैं। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी संकटों को खत्म करने वाली चतुर्थी है। गणेश जी को इस दिन दुर्वा चढ़ाना चाहिए। दुर्वा में अमृत का वास माना जाता है। गणेश जी को दुर्वा अर्पित करने से स्वास्थ का लाभ मिलता है।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।
संकष्टी चतुर्थी हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणपति की आराधना करके विशेष वरदान प्राप्त किया जा सकता है और सेहत की समस्या को भी हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी भी बहुत ही खास होती है। इस दिन व्रत रखने से परिवारिक कलेश भी खत्म हो जाते हैं।
संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के भक्त इस व्रत रखते हैं और चंद्रमा के दर्शन के बाद उपवास तोड़ते हैं। इस दिन रखे जाने वाले व्रत में फलों का सेवन किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि यदि इस व्रत को पूरे श्रद्धाभाव, विधि और आस्था के साथ किया जाए तो जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। चूंकि संकष्टी चतुर्थी हर माह आती है इसलिये यदि कोई जातक साल की सभी संकष्टी चुतुर्थियों पर व्रत रखता है तो उसे मनचाहे फलों की प्राप्ति होती है। सूर्यास्त के बाद चांद को तिल, गुड़ आदि से अर्घ्य देना चाहिए। इस अर्घ्य के बाद ही व्रती को अपना व्रत खोलना चाहिए।
राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया। उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेश जी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की। दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चो का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई। इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाले संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।
चन्द्रोदय का समय- शाम को 07:48 बजे
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ- 15 नवम्बर, शाम 07:46 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त- 16 नवम्बर, शाम 07:15 बजे
एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थीं। उनको चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उनके अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला करे। ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी। खेल में माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। इस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं।
क्रोधित पार्वती जी ने उसे बालक को लंगड़ा बना दिया। उसने माता से माफी मांगी, लेकिन उन्होंने कहा कि श्राप अब वापस नहीं लिया जा सकता, पर एक उपाय है। संकष्टी के दिन यहां पर कुछ कन्याएं पूजन के लिए आती हैं, उनसे व्रत और पूजा की विधि पूछना। तुम भी वैसे ही व्रत और पूजा करना। माता पार्वती के कहे अनुसार उसने वैसा ही किया। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उसके संकटों को दूर कर देते हैं।
आज संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन गणेश जी की पूजा करने से श्रद्धालु के बुरे समय कटते हैं। भगवान गणेश के लिए किया गया यह व्रत विद्या, बुद्धि, सुख-समृद्धि की दृष्टि से बहुत लाभदायक माना जाता है।
आज का पंचांग:
सूर्य दक्षिणायन। सूर्य दक्षिण गोल। हेमंत ऋतु। प्रात: 10.30 से 12 बजे तक राहुकालम्। 15 नवंबर, शुक्रवार 2019, 24 कार्तिक (सौर) शक 1941, 01 अग्रहायण मास प्रविष्टे 2076, 17, रवि-उल-अव्वल सन् हिजरी 1441, मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया सायं 7.46 बजे तक उपरांत चतुर्थी, मृगशीर्ष नक्षत्र रात्रि 11.12 बजे तक तदनंतर आद्र्रा नक्षत्र, शिव योग, प्रात: 8.04 बजे तक पश्चात् सिद्ध योग, वणिज करण, चंद्रमा प्रात: 11.02 बजे तक वृष राशि में उपरांत मिथुन राशि में।
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम्
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:
वैसे तो हिंदू धर्म के ज्यादातर पर्व और त्योहार में सूर्योदय की प्रधानता है लेकिन संकष्टी चतुर्थी में चंद्रोदय के आधार पर पूजा अर्चना और व्रत का विधान है। इस दिन व्रत रखने वाले पूरे दिन व्रत रखते हैं और शाम को चांद निकलने के बाद ही गणपति की आरती के साथ पूजा को संपन्न करते हैं।
संकष्टी चतुर्थी को लेकर मान्यता है कि अगर वह मंगलवार को पड़े तो उत्तम संयोग होता है। तब इसे अंगरकी चतुर्थी कहा जाता है। आपको बता दें कि संकष्टी चतुर्थी की पूजा ज्यादा देश के पश्चिमी राज्यों और दक्षिण भारत खासकर महाराष्ट्र और तमिलनाडु में होता है।
भले ही संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने रखा जाता है लेकिन माघ मास में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व है। इसके अलावा अमावस्या के बाद पूष महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी का भी विशेष महत्व कहा गया है। कार्तिक पूर्णिमा के बाद मार्गशीर्ष महीना ये चल रहा है। इसमें भी संकष्टी चतुर्थी की तिथि आज यानी 15 नवंबर को है।
हिंदू धर्म के अनुसार, हर महीने में दो बार चतुर्थी तिथि आती है। एक पूर्णिमा के बाद जब पूरा चांद दिखाई देता है कृष्ण पक्ष में और दूसरा अमावस्या के बाद या शुक्ल पक्ष में जब नया चांद निकलता है। कृष्ण पक्ष में होने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं जबकि शुक्ल पक्ष में होने वाली चतुर्थी विनायक चतुर्थी कहलाती है।
संकष्टी चतुर्थी पर श्री गणपति महाराज की पूजा होती है। इस पूजा के लिए आपको पीतल की थाली, उसमें पुष्प, धूप, दीप, तांबूल, चंदन, कर्पूर, मौली, रोली, कुमकुम, अक्षत, दूर्वा, प्रसाद के लिए मोदक आदि सामग्री जुटानी है।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत दयावंत चार भुजा धारी,
माथेपर तिलक सोहे मुसे की सवारी।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लढूअन का भोग लगे संत करे सेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधे को आँख देत कोढिन को काया,
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।
सूर शाम शरण आये सफल कीजिये सेवा,
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।