श्रावण मास भगवान शिव की आराधना का विशेष महीना माना जाता है। भगवान शिव को अपना आराध्य मारने वाले उन को प्रसन्न करने के लिए सावन में शिवालयों में रुद्राभिषेक करते हैं परंतु कुछ साधक शिव की विशेष पूजा के लिए पार्थिव पूजन करते हैं। मगर जब श्रावण मास में पुरुषोत्तम मास यानी अधिक मास का समावेश हो जाए तो उस मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गंगा के पावन तट पर पार्थिव पूजन करने का महत्त्व और अत्यधिक बढ़ जाता है। शिव के उपासक पार्थिव लिंग बनाकर शिव पूजन करते हैं जिसका विशेष पुण्य मिलता है।
श्रावण के पुरुषोत्तम मास में 19 जुलाई से 16 अगस्त हरिद्वार में होगा पूजन
हरिद्वार में गंगा के पावन तट पर इस बार श्रावण के पुरुषोत्तम मास में 19 जुलाई से 16 अगस्त तक राजस्थान के दोसा जिले में श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत नरेश गिरि महाराज भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पार्थिव पूजन कर रहे हैं। वेदों के ज्ञाता 95 ब्राह्मण इस पार्थिव पूजन के विशेष अनुष्ठान में अपना सहयोग कर रहे हैं। जिनमें 35 ब्राह्मण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सामूहिक रूप से रुद्री पाठ करते हैं।
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए श्रीमद्भागवत का नियमित रूप से रोजाना 108 बार पाठ करते हैं, साथ भगवान शिव के रुद्रावतार हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं।
बहुत ही आध्यात्मिक और मन को सुकून देने वाला होता है गंगा तट पर वातावरण
इस तरह बालाजी का दरबार राजस्थान के मेहंदीपुर बालाजी से आए महंत नरेश गिरि महाराज तीर्थ नगरी हरिद्वार में गंगा तट पर शिव और भगवान विष्णु का पुरुषोत्तम मास में एक साथ एक स्थान पर कठोर साधना के अपने संकल्प को धरातल पर उतार रहे हैं। इस तरह गंगा के इस पावन तट पर श्रावण मास के पुरुषोत्तम मास में शिव और विष्णु का पावन मिलन हो रहा है और वातावरण बहुत ही आध्यात्मिक है जो मन को सुकून प्रदान करता है। 19 जुलाई से शुरू हुए इस अनुष्ठान में रोजाना 12000 विशेष प्रकार की मिट्टी से विशेष पूजा अनुष्ठान करके पार्थिव लिंग बनाए जाते हैं और उनकी वैदिक मंत्रों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। उसके बाद विशेष प्रकार का रुद्री पाठ किया जाता है।
रुद्राभिषेक के बाद इन पार्थिव लिंगों को गंगा में रोजाना विसर्जित किया जाता है महंत नरेश गिरि महाराज बताते हैं कि पार्थिव पूजन के लिए जो विशेष प्रकार की मिट्टी विशेष प्रकार से एकत्रित की जाती है वह मिट्टी विशेष मुहूर्त में ही एकत्र की जाती है और उसे एकत्रित करने की एक विशेष विधि प्रयोग में लाई जाती है। 19 जुलाई से 15 जुलाई तक चलने वाले इस विशेष अनुष्ठान में 3 लाख 25 हजार पार्थिव शिवलिंगों की पूजा की जानी है और यह अनुष्ठान निर्विघ्न रूप से चल रहा है।
महंत नरेश गिरि महाराज बताते हैं कि शिव महा पुराण में पार्थिव शिवलिंग पूजा का विशेष महत्त्व बताया गया है। कूष्मांड ऋषि के पुत्र मंडप ने पार्थिव पूजन की शुरुआत की थी। शिव महापुराण के अनुसार श्रावण मास में पार्थिव पूजन से धन, धान्य, आरोग्य और पुत्र प्राप्ति होती है। वहीं मानसिक और शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है और श्रावण मास के पुरुषोत्तम मास में तो पार्थिव पूजन का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है और गंगा के पावन तट पर किया गया पार्थिव पूजन का फल कई गुना मिलता है।
पार्थिव पूजन से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। शिवजी की अराधना के लिए पार्थिव पूजन सभी लोग कर सकते हैं, फिर चाहे वह पुरुष हो या फिर स्त्री। भगवान शिव कल्याणकारी हैं। मान्यता है कि श्रावण मास में जो श्रद्धालु पार्थिव शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजन अर्चना करता है, वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग लोक में निवास करता है। पार्थिव पूजन सभी प्रकार के दुखों को दूर करके सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है। श्रावण मास के पुरुषोत्तम मास में यदि प्रति दिन पार्थिव पूजन किया जाए तो श्रद्धालु को लोक तथा परलोक में भी अखण्ड शिव भक्ति प्राप्त होती है।
पार्थिव पूजन के लिए विशेष प्रकार की मिट्टी, गाय का गोबर, गुड़, मक्खन और भस्म मिलाकर पार्थिव शिवलिंग बनाए जाते हैं। शिवलिंग बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि पार्थिव शिवलिंग 12 अंगुल से ऊंचा नहीं बने। जो मिट्टी पार्थिव शिवलिंग में प्रयोग की जाती है उसे शिवलिंग बनाने से पहले पुष्प चंदन आदि से वैदिक मंत्रों से विशेष प्रकार से शोधित किया जाता है उत्तर दिशा की ओर मुंह करके शिवलिंग बनाए जाते हैं पार्थिव शिवलिंग को बनाने से पहले देवताओं की पूजा की जाती है और शिवलिंग निर्मित होने के बाद गणेश, विष्णु भगवान, नवग्रह और माता पार्वती इत्यादि देवी देवताओं का आह्नवान किया जाता है और उसके उपरांत विधि विधान के साथ षोडशोपचार किया जाता है।
महंत नरेश गिरि महाराज बताते हैं कि पार्थिव पूजन की शुरुआत सबसे पहले त्रेता युग में भगवान श्री राम ने की थी। रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले उन्होंने समुद्र के तट पर रामेश्वरम में रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और शांति के लिए भगवान शिव का पार्थिव पूजन किया। इस तरह पार्थिव पूजन के समय भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की संयुक्त पूजा का फल मिल जाता है जो मनुष्य को एक साथ शिव और विष्णु लोक का सुख प्रदान करता है। क्योंकि भगवान विष्णु ने ही नरसिंह अवतार लेने के लिए पुरुषोत्तम मास का निर्माण किया था और अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। इसलिए इस बार श्रावण मास और पुरुषोत्तम मास का एक साथ मिलन हो रहा है जो एक दिव्य संयोग है।