गर्ग सहिंता के अनुसार माना जाता है कि भगवान कृष्ण और राधा रानी का विवाह हुआ था। इनके विवाह के बारे में किसी भी स्थान पर अधिक चर्चा नहीं की जाती है, लेकिन गर्ग संहिता में राधा और कृष्ण के बारे में व्याख्यित किया गया है। माना जाता है कि नंदबाबा एक बार बाल कृष्ण को खिला रहे थे। उनके साथ खेलते हुए नंदबाबा वन में आ जाते हैं। वहां उनके सामने अचानक तूफान जैसी हो जाती है। अंधेरा छाने लगता है और तभी एक चमत्कारी रौशनी आती है। उस दिव्य रौशनी में श्रृंगार करे हुए साक्षात देवी दिखती हैं। राधा रानी की नंदबाबा को दर्शन देती हैं और नंदबाबा उन्हें प्रणाम करके कहते हैं कि मैं भाग्यशाली हूं कि मेरी गोद में श्री हरि हैं और राधा रानी मेरे समक्ष खड़ीं हैं।

नंदबाबा श्री कृष्ण को उन्हें गोद में देकर वहां से चले जाते हैं। बाल कृष्ण किशोर रुप में आ जाते हैं। उस स्थान से अंधेरा हट जाता है और तूफान थमने के बाद वहां ब्रह्मा जी आते हैं और वेद मंत्रों के उच्चारण में राधा और कृष्ण जी का गंधर्व विवाह करवाते हैं। विशाखा और ललिता वहां विवाहकालीन गीत गाती हैं। आकाश से फूलों की वर्षा होने लगती है और उसके बाद ब्रह्मा जी और सभी सखियां वहां से चले जाते हैं। भगवान कृष्ण और राधा रानी सिंहासन पर विराजमान होकर कुछ समय व्यतीत करते हैं। थोड़े समय के बाद भगवान कृष्ण पुनः बाल रुप धारण कर लेते हैं।

राधा रानी वापस नंदबाबा को बाल कृष्ण सौंप देती हैं। इसके बाद श्री कृष्ण मथुरा आ जाते हैं तो राधा रानी अपनी छाया को स्थापित करके खुद अंतर्ध्यान हो जाती हैं। कई स्थानों पर पाया जाता है कि योगमाया के निर्देश के अनुसार वृषभानु ने अभिमन्यु से करवाया था। योगमाया के प्रभाव के कारण राधा रानी की परछाई को अभिमन्यु स्पर्श भी नहीं कर पाया था।