इंसानों द्वारा एक ऐसा पाप जिसका किसी भी रुप से पश्चताप नहीं किया जा सकता है। यदि कोई पुरुष किसी पराई स्त्री पर नजर रखता है या स्त्री किसी दूसरे पुरुष के पास जाती है तो इसे इंसानों के कर्मों में पाप माना जाता है। इसी के साथ अपने पति-पत्नी के अलावा किसी और के साथ शारीरिक संबंध बनाना महापाप माना जाता है। इसके बाद व्यक्ति से होने वाला दूसरा पाप चोरी करना होता है। हर किसी को अपनी मेहनत का ही लेना चाहिए। माना जाता है जो लोग दूसरों का धन धोखेबाजी से लेते हैं उन्हें जीवन में उसका दस गुणा देना पड़ सकता है।
शारीरिक रुप से होने वाला तीसरा पाप होता है किसी के साथ हिंसा करना। माना जाता है कि बिना किसी बात के हिंसा करना महापाप है। किसी की गलती होने के बाद भी हिंसा को नहीं अपनाना चाहिए, ये शास्त्रों के अनुसार एक कुकर्मी बना देती है। वाणी से होने वाले पाप को भी कुकर्म माना जाता है। यदि अपने शब्दों से किसी को ठेस पहुंचाते हैं या व्यर्थ की बाते करते हैं तो वो आपके अच्छे कर्मों के लिए हानिकारक हो सकता है। किसी की चुगली करना या बातों में नमक-मिर्च लगाकर बताना वाणी से होने वाला पाप माना जाता है। झूठ बोलना भी कुकर्म माना जाता है।
किसी के धन पर अपनी नजर गड़ाना और उसे किस तरह से हड़पा जाए ये सोचना या किसी से दुश्मनी कर लेना भी महापाप की श्रेणी में आता है। अपने कर्मों पर विश्वास ना करके सिर्फ फल के बारे में सोचना भी शास्त्रों के अनुसार पाप माना जाता है। अपने कर्मों पर विश्वास करके ही फल की इच्छा करनी चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि अपना कर्म किए जा, फल की इच्छा ना कर। समय आने पर फल भी प्राप्त होता है।


