शनि देव को लेकर कई सारी कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। शनि को बहुत ही क्रूर ग्रह माना जाता है। शनि की दृष्टि को भी विनाशकारी कहा गया है। वहीं, ज्योतिष शास्त्र में शनि देव का उल्लेख दंडाधिकारी के रूप में मिलता है। यानी कि जो कोई भी अन्याय या गलत काम करता है, शनि देव उसे सजा जरूर देते हैं। माना जाता है कि शनि देव को अन्याय बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं है। शनि के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह सदैव अपने पिता सूर्य देव से क्रोधित रहते हैं। कहते हैं कि शनि और सूर्य का रिश्ता कई सालों से खराब ही चला आ रहा है। आज हम इसी बारे में विस्तार से बात करने जा रहे हैं।
शनि और सूर्य देव के संबंध को लेकर एक कथा प्रचलित है। इस कथा में इनके खराब रिश्ते की वजह बताई गई है। इसके मुताबिक शनि देव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में हुआ था। शनि के जन्म के लिए कश्यप यज्ञ कराई गई थी। सूर्य देव की पत्नी छाया शिव जी की पूजा करती थीं। एक बार छाया ने भूखे-प्यासे रहकर शिव जी की कठोर तपस्या की, उस समय शनि उनकी गर्भ में थे। भूख, प्यास, धूप इत्यादि सहने की वजह से गर्भ में ही शनि का रंग काला पड़ गया। जन्म के समय भी शनि का रंग काला ही रहा।
सूर्य देव ने जब अपने बेटे का काला रंग देखा तो उन्होंने अपनी पत्नी छाया पर संदेह किया। उन्होंने छाया को अपमानित करते हुए कहा कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। यह सुनकर शनि को बहुत ही क्रोध आया। शनि ने ऐसी क्रोधित नजरों से सूर्य को देखा कि उनका रंग काला पड़ गया। साथ ही सूर्य देव के घोड़ों की चाल रुक गई। इसके बाद शिव जी ने सूर्य देव को उनकी गलती का एहसास दिलाया। सूर्य देव के शनि से क्षमा याचना करने पर उनका असली रूप मिल सका। माना जाता है कि इस घटना के बाद से ही शनि और सूर्य देव के बीच का रिश्ता खराब चला आ रहा है।