भगवान विष्णु और शंकर से जुड़े कई प्रसंग बड़े ही प्रचलित हैं। इन प्रसगों को आए दिन भक्तों के बीच में साझा किया जाता रहता है। आज हम भी आपके लिए विष्णु और शिव जी से जुड़ा एक रोचक प्रसंग लेकर आए हैं। इस प्रसंग में उस घटनाक्रम का उल्लेख किया गया है जब विष्णु ने शिव को प्रसन्न करने के लिए नेत्रदान कर दिया था। इस प्रसंग के मुताबिक एक बार समस्त देवतागण असुरों के अत्याचारों से परेशान होकर विष्णु जी के पास गए। इस समस्या पर विष्णु जी ने गहराई से विचार किया और असुरों के अत्याचारों को रोकने का उपाय ढूंढ़ने लगे। विष्णु जी को लगा कि इस समस्या का निदान शिव जी की कृपा से ही हो सकता है।

विष्णु जी शिवधाम कैलाश पर्वत जाकर उनकी पार्थना करने लगे। शिव जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्रीहरि ने शिवसहस्त्रनामावली से परमेश्वर की उपासना की। यानी कि उन्होंने हजार नामों से भगवान शंकर की स्तुति करनी आरंभ की। विष्णु, शिव के प्रत्येक नाम के उच्चारण के साथ कमल का एक फूल उन्हें अर्पित करते थे। यह देखकर शिव जी ने मन में उनकी परीक्षा लेने का विचार आया। और उन्होंने एक हजार कमल के फूलों में से एक को छिपा दिया। विष्णु को शिव के अंतिम नाम का उच्चारण करने पर अर्पित करने के लिए एक फूल नहीं मिला।

श्री हरि विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपनी एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। शिव जी ऐसी सच्ची भक्ति देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए। और विष्णु के समक्ष प्रकट होकर उन्हें नए नाम ‘कमलनयन’ से पुकारा। साथ ही उनसे वरदान मांगने के लिए भी कहा। विष्णु ने शिव से एक ऐसा अजेय शस्त्र मांगा जिसकी सहायता से वे देवगणों को असुरों के प्रकोप से बचा सकें। इस पर शिव ने विष्णु को अपना सुदर्शन चक्र दे दिया। इस प्रकार से विष्णु जी ने असुरों से देवतागण की रक्षा की। और सुदर्शन चक्र सदा के लिए विष्णु जी का हो गया।