Ratna Shastra: कई व्यक्तियों को रत्न धारण करने का शौक होता है। वह अपनी पसंद, मर्जी या शौक से रत्न धारण किया करते हैं। वहीं कुछ लोगों को उनके पंडित जी कुंडली या जन्म के आधार पर रत्न धारण करने का परामर्श दे देते हैं। रत्नों का अपना प्रभाव है। रत्न शब्द से ही किसी मूल्यवान वस्तु का आभास होता है। रत्न शब्द सुनते ही आभास होता है इस बात का की यह कोई कीमती चीज है। रत्नों का मूल्य उनके गुणों और दुर्लभता के ऊपर किया जाता है। तो आइये आज इस लेख में हम जानते हैं रत्नों का निर्धारण कैसे करें।

जन्म राशि के आधार पर: जन्म पत्रिका में जो चन्द्र राशि है, या फिर नाम के आधार पर जो राशि बनती है उसके आधार पर रत्नों का चयन किया जाता है। जो ग्रह कुंडली में कष्टकारी बन रहा हो उसकी शांति के लिए भी उस ग्रह के रत्न को धारण करने का सुझाव दिया जाता है।

रत्नों का निर्धारण: रत्नों का चयन जन्मकुंडली या जन्मराशि के आधार पर होता है। यदि वह रत्न शुभफलदायी हुआ तो रत्न धारण करने पर जातक को शुभ फल मिलते हैं। यदि जाने अनजाने या किसी भी कारण से विपरीत रत्न धारण करते हैं तो वह अशुभ फलदायी रहता है। रत्न निर्धारण सिद्धांत के आधार पर सामान्य रूप से कुंडली के आधार पर रत्न निर्धारण किया जाता है कि कौन सा ग्रह शुभ या अशुभ फल दे रहा है।

महादशा के आधार पर निर्धारण: जातक की चल रही महादशा के स्वामी ग्रह के रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। यदि शुभ ग्रह की महादशा चल रही है तो निश्चित रूप से उस दृष्टि में उसका रत्न धारण किया जाए तो शुभफलों में वृद्धि कर देता है। यदि अशुभ ग्रह की महादशा चल रही हो और फिर उस महादशा के स्वामी ग्रह का रत्न धारण करा दिया जाए तो वह अशुभता में बदल जायेगा। इस मामले में थोड़ा गंभीरता से विचार करके रत्न का निर्धारण करना चाहिए।

वर्ग के आधार पर निर्धारण: 9 ग्रहों को दो वर्गों में बांटा गया है। पहले वर्ग में सूर्य, चंद्र, मंगल व गुरु (बृहस्पति) आते हैं और दूसरे वर्ग में बुध, शुक्र, शनि, राहु और केतू आते हैं। जिस वर्ग का लग्न हो उससे विपरीत जो वर्ग है। उस विपरीत वर्ग वाले ग्रह का रत्न धारण नहीं करना चाहिए। जैसे – यदि लग्नेश सूर्य, मंगल, चंद्र या गुरु हो ऐसे जातकों को दूसरे वर्ग के ग्रह बुध का रत्न पन्ना, शुक्र का रत्न हीरा, शनि का रत्न नीलम, राहु का रत्न गोमेद व केतू का रत्न लहसुनिया धारण नहीं करना चाहिए।