Ramayan 11th April Episode: कोरोनावायरस लॉक डाउन के चलते लोगों को बोरियत का सामना न करना पड़े इसलिए रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण का री-टेलीकास्ट एक बार फिर से दूरदर्शन परकिया गया है। घर बैठे लोग इस समय इस लोकप्रिय शो का बेहद आनंद उठा रहे हैं। आपको बता दें कि टीवी पर इसने वापसी के साथ नये रिकॉर्ड भी बना लिये हैं। इस शो को जमकर टीआरपी मिल रही है। बीते एपिसोड में दिखाया गया कि शाम के एपिसोड में दिखाया गया कि अपने छोटे भाई विभीषण के अवमानना करने पर रावण उन्हें लंका छोड़ने का आदेश देते हैं।
विभीषण अपनी मां कैशकेयी से विचार-विमर्श करके भगवान राम की शरण में जाने के लिए निकलते हैं। इधर, सुग्रीव और जामवंत को रावण के छोटे भाई को शरण देना उचित नहीं लगता, लेकिन हनुमान सभी को विभीषण की राम-भक्ति के बारे में बताते हैं। इसके उपरांत विभीषण राम जी से मिलने आते हैं और उन्हें अपना सेवक बनाने की विनती करते हैं, वहीं, श्री राम उन्हें मित्र का दर्जा देते हैं और लंकेश कह कर संबोधित करते हैं। उसके बाद पूरे विधि विधान से प्रभु राम विभीषण का राज्याभिषेक करवाते हैं।
वहीं, इससे पहले धारावाहिक में हनुमान जी द्वारा लंका में आग लगाने के प्रसंग को दिखाया गया था। बता दें कि हनुमान जी द्वारा अपने लिए कटु बातें सुनकर रावण काफी क्रोधित हो जाता है। फिर सभाजन की बात को मानते हुए हनुमान जी की पूंछ जलाकर उन्हें दंड देने का आदेश देता है और फिर श्री राम भक्त हनुमान अपनी जली हुई पूंछ से रावण की पूरी लंका को जला देते हैं। श्री हनुमान जी ने लंका जलाने के बाद समुद्र के पास जाकर अपने पूंछ की आग बुझाते हैं। अब सभाजन रावण को सावधान रहने की राय देते हैं और विभिषण का मकान नहीं जला इस बात को लेकर सभी संदेह जताते हैं।
इधर, हनुमान जी माता जानकी से दोबारा मिलने पहुंचते हैं। सीता मां हनुमान जी को सदा राम जी का लाडला बना रहने का आशीर्वाद देती हैं। जिसे सुनकर भगवान हनुमान काफी प्रसन्न हो जाते हैं। अब वो माता सीता से ऐसी निशानी मांग रहे हैं जिसे वो भगवान राम को दिखा सकें।
राम जी अपनी सेना से कहते हैं कि जब तक पुल का निर्माण चल रहा है, वो अपने आराध्य शिव जी की पूजा करेंगे। इधर, वानर सेना पुल बनाने के कार्य में जुटी थी और श्री राम विधिवत् शिव पूजा में लीन थें। राम पूरे विधि-विधान से शिवलिंग की स्थापना करते हैं और उन पर पुष्प और बेलपत्र अर्पित करते हैं।
रावण को जैसे ही इस बात की खबर लगी तो वो बेहद क्रोधित हो गए। वहीं, सीता इस बात को जानने के बाद बहुत ही प्रसन्न हुईं और समुद्र देव ने राम जी के चरण छुए इस बात से भी माता सीता गौरवांवित हुईं। वो कहती हैं कि अब राम-सीता के मिलन में ज्यादा समय नहीं है।
समुद्र देवता राम को बताते हैं कि उनकी सेना में नल-नील नामक दो भाई हैं जिन्हें ऋषि ने श्राप दिया था कि वो जो कुछ भी पानी में डालेंगे, वो डूबेगा नहीं। अगर वो समुद्र पर सेतु बांध बनाएंगे तो समुद्र पर पुल का निर्माण मुमकिन है। राम जी ने समुद्र से कहा कि हमारी एक और समस्या का समाधान करो, उन्होंने कहा कि उनका ये बाण अमूक है तो ये बाण वो कहां छोड़ें। इस पर देव कहते हैं कि उत्तर दिशा में द्रोणकाल नामक एक जगह है जहां असुर दुराचार करते हैं। इसके उपरांत राम जी ने विश्वकर्मा नंदन नल-नील को सेतु बनाने की आज्ञा दी।
प्रभु राम ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र उठा लिया जिसके भय से समुद्र देवता प्रकट हुए और उनके चरणों में गिर पड़े। उन्होंने कहा कि जल यदि अपने प्रवाह को रोकेगा तो इससे राम जी की आज्ञा का ही उल्लंघन होगा। अगर पंचतत्व में से किसी भी तत्व में विकार आएगा तो सृष्टि में प्रलय आ जाएगा। सारी बातें सुनकर राम जी समुद्र से कहते हैं कि हमें कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे न तो समुद्र की गरिमा भंग हो और वो अपनी सेना को लेकर समुद्र भी पार कर लें।
3 दिन से विधिवत पूजन करने के बाद क्रोध से भरे राम ने समुद्र से कहा कि भूतकाल इस बात का गवाह है कि क्षत्रिय किसी के आगे मदद नहीं मांगते हैं लेकिन राम की अराधना को समुद्र ने उनकी कमजोरी मान ली और केवल अहंकार की गर्जना की। राम लक्षमण से कहते हैं कि उनका धनुष-बाण ले आएं। वो समुद्र से कहते हैं कि तुम जैसे अहंकारी को दंड अवश्य मिलना चाहिए. वो आगे कहते हैं कि समुद्र पर ब्रह्मास्त्र चलाकर वो उसे पाताल पहुंचा देंगे।
कौशल्या भरत से कहती हैं कि वो राम जी का पता लगाएं, वो अवश्य किसी संकट में है। भरत उनसे कहते हैं कि इन तीनों लोकों में भैया राम को नुकसान पहुंचाने वाला कोई नहीं है। भरत कौशल्या से कहते हैं कि राम की चरण पादुका पर मौजूद पुष्प आह्लादित हैं और ये शुभ सूचक हैं, शास्त्रों में भी यही कहा गया है।
सुबह से शाम हो गई है लेकिन समुद्र की लहरें ज्यों की त्यों ही हैं। इधर, राम जी लगातार समुद्र की अराधना में लीन थे। पूरी वानर सेना वहीं सिंधु तट पर बैठे समुद्र को निहारे जा रही थी। हनुमान जी कहते हैं कि क्या समुद्र महाराज सगर के उपकारों को भूल गया। दो दिन व्यतीत हो जाने के बावजूद समुद्र की लहरों में कोई बदलाव नहीं आया। वहीं, अयोध्या में माता कौशल्या भरत से कहती हैं कि राम किसी मुसीबत में हैं। उन्होंने स्वप्न में देखा कि राम एक अथाह समुद्र से घिरे हुए हैं।
श्री राम ने अन्न-जल का त्याग करके समुद्र की अराधना शुरू की और उनसे अपनी प्रार्थना स्वीकार करने की विनती की। इस बात की जानकारी जब रावण को मिली तो वो कहने लगे कि भिखारी की भांति रहते-रहते उन्हें मांगने की आदत हो चुकी है। इधर, राक्षसिनी सीता से कहती हैं कि राम निराश होकर समुद्र तट पर बैठे हैं। सीता चिंतित होकर सोचने लगीं कि कहीं रावण के जैसे बाकी लोग भी उनके स्वामी का उपहास न बनाएं। सीता माता ने फैसला किया कि जब तक राम अन्न जल का त्याग करेंगे तब तक वो भी व्रत रखेंगी।
सागर किनारे बैठकर विभीषण से राम पूछते हैं कि इस समुद्र को पार करने के क्या तरीके हो सकते हैं। इस पर विभीषण कहते हैं कि वो सभी तो अपनी आसुरी शक्ति के कारण उड़कर समुद्र पार कर लेते हैं लेकिन वानर और नर ऐसा नहीं कर सकते हैं। विभीषण सुझाव देते हैं कि इस परेशानी से निकलने के लिए समुद्र से ही मदद मांगना चाहिए। लक्षमण राम से कहते हैं कि ये विचार तो अच्छा है लेकिन मांगने की क्या जरूरत है, वो क्षत्रिय हैं उन्हें मांगना शोभा नहीं देता। राम जी कहते हैं कि उन्हें विभीषण का मत उचित लगता है। राम जी ने उनसे ये सुझाव के पीछे क्या वजह है, ये जानना चाहा तो विभीषण कहते हैं कि इस समुद्र पर उनके पूर्वजों के बेहद उपकार हैं, ऐसे में समुद्र जरूर उनकी मदद करेंगे।
संदेश सुनकर लंकानरेश खिलखिलाकर हंसने लगते हैं। रावण शूक से पूछते हैं कि क्या वानर सेना मृत्यु का डर नहीं है, इस पर शूक कहते हैं कि क्षमा करें महाराज! लेकिन मैंने उनकी सेना में एक भी व्यक्ति नहीं दिखा जो अपनी मृत्यु को लेकर चिंतित था। रावण ने शूक से विभीषण का हाल पूछा, इस पर शूक ने बताया कि वहां उन्हें बहुत सम्मान मिलता है। राम उन्हें अपने समान स्थान देते हैं और उनसे मंत्रणा भी करते हैं।
विभीषण शूक से कहते हैं कि वो लंका जाकर रावण को समझाए जिस पर दूत कहता है कि रावण के हठ से तो हर कोई भली-भांति परिचित है। विभीषण कहते हैं कि लंका को बचाने के लिए तुम लोग ही एक जनमत तैयार करो तो शूक कहते हैं कि मैं रावण की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता, ये मेरे राजधर्म के खिलाफ है। शूक के जाने के बाद विभीषण सुग्रीव से कहते हैं कि मुझे आज समझ आया कि प्रभु राम आपको अपना परम और प्रिय मित्र क्यों कहते हैं।
सुग्रीव इस अन्यथा को जानना चाहते हैं जिस पर शूक कहते हैं कि इससे उनकी सारी वानर सेना का विनाश, और किश्किंधा राज्य का ह्रास हो जाएगा। इसके बाद राम, लक्षमण और विभीषण की तरह दर-दर भटकने पर मजबूर हो जाएगा। वहीं, रावण की शरण में आने पर उन्हें हर प्रकार का सुख मिलेगा। इस पर, सुग्रीव कहते हैं कि कोई भी भौतिक सुख हमेशा के लिए नहीं रहता, इसके मोह में आकर मैं अपने मित्र के साथ धोखा कर दूं। वो कहते हैं कि अगर मैं तुम्हारा प्रलोभन मैं मान लूं तो मेरे बड़े भाई परम वीर स्वर्गीय बाली और सर्वजगत में विदित पिता सूर्य उन्हें धिक्कारेंगे। अपने कुटिल कपटी और कूटनीतिक राजा को जाकर बता देना कि पूरी वानर सेना उस दुरात्मा के वध का इंतजार कर रहा है।
अपने कक्ष से निकलते हुए विभीषण उस मायावी पक्षी को पहचान लेते हैं और उसके यहां आने के पीछे की वजह को सोचकर चिंतित हो जाते हैं। इधर, मायावी किश्किंधा नरेश सुग्रीव के कक्ष में पहुंचता है, परिचय पूछने पर अपना शूक बताते हुए वो कहता है कि लंकानरेश रावण ने उनके लिए संदेश दिया है। रावण ने कहलवाया है कि वो उनके दोस्त बाली के छोटे भाई हैं इसलिए वो कभी भी लंका आ सकते हैं। इसके अलावा, शुक ने सुग्रीव को हर तरह के लोभ से आकर्षित करने का प्रयास किया। रावण की मित्रता को स्वीकार करना ही उनके लिए बेहतर है अन्यथा अच्छा नहीं होगा।
रावण से आज्ञा पाकर दूत सागर को पार करके एक पक्षी का रूप धारण कर राम जी की शिविर में पहुंचते हैं। इधर, वानर सेना में सागर को पार करने की अलग-अलग चर्चाएं हो रही थीं। कुछ अगस्त्य मुनि की बात कर रहे थे तो कुछ श्री राम और हनुमान जी की शक्ति को लेकर। हालांकि, इस बात का विश्वास हर किसी को है कि श्री राम सागर पार करने का कोई तोड़ अवश्य निकाल लेंगे। इधर, सुग्रीव श्री राम से कहते हैं कि क्यों ने इस बात की युक्ति विभीषण से पूछा जाए।
इंद्रजीत ने आज ही राम की सेना पर आक्रमण करने की सलाह देते हैं जिसपर सेनापति अकंपन कहते हैं कि ऐसा करना बहुत बड़ी भूल होगी क्योंकि हम अपने देश में अधिक सुरक्षित और बलशाली होते हैं। रावण भी हां में हां मिलाते हुए कहते हैं कि सैनिक शक्ति का प्रयोग यहां उचित नहीं, हमें कूटनीति से चलना चाहिए। वो कहते हैं कि नर और वानर के बीच में दूरी पैदा करने को कहते हैं। अपने गुप्तचर से रावण कहते हैं कि हम सुग्रीव से संधि करेंगे, उसकी कमजोरी पर वार करने को कहते हैं। राजनीति और कूटनीति की दूत सिखाकर दूत को रावण ने राम जी की शिविर की ओर भेजा।
लंका से निकाले जाने पर प्रभु राम की शरण में आए विभीषण ने श्री राम से उनकी तथा लंका के निरापराध प्रजा की रक्षा करने की विनती की। उन्होंने कहा कि रावण जैसे पापी के कर्मों की सजा पूरी प्रजा को नहीं मिलनी चाहिए। इस पर राम जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी सेना बेकसूर लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ेगी, अपितु उनकी रक्षा करेगी। राम जी कहने लगे कि हम केवल उन्हीं का संहार करेंगे जो हमारी सेना के सन्मुख आएंगे।
विभीषण श्री राम की शरण में जा रहे हैं, इस बात की खबर जब रावण को लगी तो उसने अपने सेना में से शार्दुल को एक वानर का रूप लेकर प्रभु राम की छावनी में भेजा। वापस आने के बाद विभीषण के राज्याभिषेक का आंखों देखा हाल, शार्दुल ने रावण को कह सुनाया। इसके उपरांत, इंद्रजीत श्री राम की सेना का मजाक उड़ाने लगे जिस पर रावण सेना के एक वरिष्ठ ने शत्रु का उपहास न करने और उन्हें कमजोर न समझने की सलाह दी। वो कहने लगे कि लंका में जो लोग रावण से सहमत नहीं होंगे वो विभीषण के अनुयायी बनने की कोशिश करेंगे। राम ने एक ही चाल से रावण के शत्रुओं के मन में आशा और उनके अनुयायियों के मन में आशंका का बीज डाल दिया है।